निःसन्देह स्क्रीन राइटर गौरव शुक्ला, नीरेन भट्ट, अभिजीत खुमान, प्रणय पटवर्धन ने गौरव शुक्ला व वैभव शिकदर के सिनेमाई क्रिएशन “असुर” को सीजन 2 में बेहतरीन ग्रिप व थ्रिल में लिखा है कि एक सिटिंग में पूरे आठों एपिसोड को निपटा दो

लेखकों ने कलयुगी भविष्य के सबसे प्रभावशाली अस्त्र ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ को अच्छे से अपने किरदारों व कहानी के इर्दगिर्द पिरोहा है। सर्वानंद यानी शुभ जोशी की कहानी को पहले भाग के क्लाइमैक्स से ही उठाया है।
यक़ीनन पहला पायलट भाग अद्भुत था। सीजन 2 काफ़ी देरी से निकला है तो पिछला रिवाइंड करना पड़ेगा…भारतीय वेब सीरीज फोल्डर में असुर के लेखकों ने अपने आप को उस श्रेणी में शामिल करवा लिया है जहाँ दमदार दूसरे सीजन खड़े है। या यूं कहें, सीजन 1 की सफलता को स्वयं पर हावी नहीं होने दिया है। कलम को उसी अंदाज में रखा है, जो असुर को पसंद है।
सीजन-2 का स्केल बढ़ा दिया और कुछ नए क़िरदारों को इंट्रोड्यूस करवाया है। तभी तो वूट से जिओ सिनेमा पर स्ट्रीम हुआ है। सीजन 3 की कड़ी में वृंदा श्रीवास्तव “बरखा बिष्ट सेनगुप्ता” को सस्पेंस में छोड़ गए। ख़ैर।
प्रॉपर हिंदी में डायलॉगबाजी बढ़िया है।
अनंत व शुभ के संवाद कमाल का माहौल बनाते है। बिना गाली गलौज के बेहतर डायलॉग लिखे जा सकते है। एकाद अंग्रेजी अपशब्द छोड़ तो साफ़-सुथरी बातचीत है।
बीजीएम टेंशन को बढ़ाता है और थ्रिल को पीक देता है।
अरशद वारसी ‘डीजे-धनंजय राजपूत’ और बरुण सोबती ‘निखिल नायर’ के किरदार असुर में सॉलिड पेस में है। दोनों अभिनेताओं ने अपने अपने किरदारों को बहुत ही उम्दा तरीके से रखा है। हाव भाव व बॉडी लेंग्वेज में उन सभी एक्सप्रेशन को कनेक्ट किया है और फील करवाते है वाक़ई परेशान, लाचार, केस का बोझ, अपने के खोने की टूटन सबकुछ डिटेल में उतार फेंका है।
अरशद ने डीजे के साथ जो फ्रस्ट्रेशन दिखाई है न, स्वाति व केसर के साथ सीक्वेंस, अल्टीमेट…निखिल में बरुण सोबती, ईशानी के किडनैपिंग सीक्वेंस धांसू अभिनय स्किल्स नजर आती है।
शुभ जोशी को बाल अभिषेक चौहान व विशेष बंसल ने शुद्ध हिंदी परिवेश में असुर बनाया है काबिलेतारीफ है। बल्कि अभिषेक के सीक्वेंस ज्यादा प्रभावी लगे….पूरा औरा संवादों से खड़ा किया था…
बाक़ी अन्य कलाकारों ने अपने किरदारों को अच्छी थ्रिलिंग राइड दी है।
इनसे इतर मुझे वृंदा श्रीवास्त ‘बरखा’ का किरदार कम स्क्रीन प्रिजेंस में ज़्यादा डेप्त वाला प्रतीत हुआ…पहली ही फ्रेम से मिस्ट्री जनरेट कर रहा था और आखिर में बूम करके गया है। सीजन 3 में मिलते है।
निर्देशक ओनी सेन ने सीजन 2 को भी सही संभाला है, सीजन 1 से रुतबा हल्का कमतर है लेकिन कंटेंट की लिखवाट के अनुरूप उचित है। कंटेंट का अतीत-वर्तमान फॉर्मेट में प्रेसेंटशन लाजबाव है।
मेरा आंकलन है। चूँकि मैंने सीजन 1 से पहले स्पेनिश ‘मनी हेस्ट’ न देखी थी। दूसरे सीजन के गैप में देख डाली है। तो असुर क्रिएटर गौरव व वैभव ने स्पेन की वेब सीरीज की थीम में मर्डर मिस्ट्री का देसी स्टाइल में अच्छा छौंक लगाया है।
असुर-2 सबसे बड़े रहस्य से पर्दा उठाता है कि डिजिटल युग में किस प्रकार प्रोपगेंडा व नैरेटिव रचे जाते है और लोगों को पैनिक व भ्रमित किया जाता है। झूठ शुरू से अपाहिज रहा है ज्यादा चल नहीं सकता है। लेकिन असुरी टूलकिटिया विंग जरबन फेक इवेंट्स को चलाती आई है।

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