अगर मैं यह कहूँ कि महाभारत युद्ध से पूर्व चाहे जो रहे हों लेकिन युद्ध में कृष्ण के बाद जो सबसे बड़े कूटनीतिज्ञ साबित हुए वह युधिष्ठिर थे तो गलत न होगा।
अगर शस्त्रों का क्षेत्र भीम व अर्जुन ने संभाला तो मनोवैज्ञानिक युद्ध का जिम्मा युधिष्ठिर ने संभाला।
एन युद्ध से पूर्व कौरव पक्ष से आह्वान कर युयुत्सु को अपने पाले में लाकर कौरव पक्ष को गहरा नैतिक व मनोवैज्ञानिक झटका दिया।
मगर इससे पूर्व ही वह सबसे बड़े युद्ध की मनोवैज्ञानिक तैयारी कर चुके थे जिसमें उनके पक्ष के सबसे बड़े योद्धा अर्जुन के प्राणों को खतरा था और वह खतरा था कर्ण।
शल्य की सारथ्य क्षमता से भली भांति परिचित युधिष्ठिर ने उनसे वचन लिया था कि जब कर्ण उनसे सारथ्य का अनुरोध करे तो वह कर्ण को हतोत्साहित कर उसका मानसिक संतुलन व एकाग्रता भंग करते रहें।
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महाभारत केवल महाकाव्य नहीं है बल्कि जीवन के प्रत्येक पक्ष का मार्गदर्शक है, यहां तक कि युद्ध का भी।
मंदिरों का पुनर्निर्माण,
हिंदुत्व को प्रोत्साहन,
विदेशी राष्ट्राध्यक्षों को हिंदू खानपान देना
गीता भेंट करना,
अंतराष्ट्रीय सम्मेलनों की भव्यता,
राम मंदिर का निर्माण,
गहरी आंतरिक सुरक्षा,
बुलडोजर से देशद्रोहियों का ध्वस्तीकरण,
सेनाओं की शक्ति बढ़ाना,
पाकिस्तान की निरंतर खस्ता हालत करना,
अरब देशों को न्यूट्रल करना,
इजरायल से विशेष संबंध,
छुटपुट ही सही पर प्रतिधर्मान्तरण,
एक्स मुस्लिम्स को मंच प्रदान करना,
ये सारे कार्य सिर्फ एक ही उद्देश्य के लिए हैं कि जब हिंदू सेनाएं गिलगित-बाल्टिस्तान में घुसें तो न केवल अंतरराष्ट्रीय समर्थन रहे बल्कि ‘भारत के गद्दार’ हतोत्साहित होकर ‘आधा मोर्चा’ खोलने की हिम्मत न जुटा सकें।
इस पूरे मामले में यू ए ई के अमीर और एम बी एस ‘शल्य’ की भूमिका निभा रहे हैं।
एक बार पी ओ के हाथ आते ही पाकिस्तान का विखंडन तय है और पाकिस्तान के विखंडन के बाद भारत के गद्दारों की हिम्मत टूट जाएगी जिसके बाद थोक के भाव घर वापसी शुरू होगी।
ये एक लंबी लड़ाई है जो सबसे ज्यादा मनोवैज्ञानिक स्तर पर लड़ी जा रही है जिसके परिणाम आने शुरू हो चुके हैं।
पाकिस्तान के लोग मानसिक तौर पर टूटने लगे हैं और उनके बाद भारत के गद्दारों की आखिरी उम्मीद भी टूट जाएगी।
आवश्यकता केवल हमारे धैर्य और इन मनोवैज्ञानिक प्रहारों की निरंतरता की है।
Written By – Devendra Sikarwar