Home विषयजाति धर्म नालंदा – एक गाथा भाग 1

नालंदा – एक गाथा भाग 1

Mannjee

by Mann Jee
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देहली में क़ुतुबउदीन ऐबक का शासन है – ममलूक वंश की नींव की आधार शिला रखी जा चुकी है। अफगानिस्थान और अरब के लुटेरे भारत की संपदा लूटने के अभ्यस्त हो चुके है। ऐबक के दरबार में रोज़ाना अफ़ग़ान और घूर के बर्बर भिन्न भिन्न अमीरों के सिफ़ारिशी ख़त ले उपस्थित होते है- ऐसे ही एक रोज़ , अफ़ग़ान के हिलमन्द प्रांत का बाशिंदा मुहम्मद बिन बख़्तियार ख़िलजी ऐबक को सलाम पेश करने आया।

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बौने क़द के बदसूरत बख़्तियार – जिसके लम्बे हाथ उसके घुटनो से पार पहुँचते थे, को देख ऐबक की हंसी छूट गयी। अपने वज़ीर से कहकहा लगा बोला- “ इस मैंमून ( बंदर) के बच्चे को कहाँ से पकड़ लाए”! बात बख़्तियार को कड़वी लगी किंतु ये सत्य था। वो ना केवल ठिग़ना था वरन हद्द से ज़्यादा घिनौना। अपने लम्बे हाथों से शमशीर बड़ी सफ़ाई से भांजता था। बहुत निष्ठुर क़बिलाई स्वभाव का ये अनपढ़ बद्दु अपने जज़्बात क़ाबू में कर बोला- “ ऐ सुल्तान- आपकी और दीन की ख़िदमत में बड़ी दूर से आया हूँ, बुतभंजको की सूची में अपना नाम जोड़ना चाहता हूँ। केवल एक मौक़े की दरकार है “। कह ख़िलजी ने सजदा किया और दो कदम पीछे हटा।

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ऐबक अपने ग़ुलामों के प्रति नर्म स्वभाव के लिए जाना जाता था- चूँकि खुद एक ग़ुलाम था तो ये आपसी मेलजोल स्वाभाविक था। बोला- “ ऐ बिन ख़िलजी- तेरी दरकार मुझे यहाँ नहीं है लेकिन तेरी लगन देख तुझे बदायूँ भेजता हूँ। बहुत जल्दी बदायूँ भी मेरी दूसरी राजधानी का रूप लेगा।तू वहाँ के सूबेदार मलिक हिज़बर की सरपरस्ती में काफिरों का सफ़ाया कर- बुतपरस्ती का नामोनिशान मिटा। जिस तरह से मैंने कोईल का सफ़ाया कर अलीगढ़ बसाया – वैसे तू भी कुछ ऐसा कर “।

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ये कह कर ऐबक ने बख़्तियार ख़िलजी को बदायूँ कूच करने का आदेश सुनाया। महज़ दो सौ घुड़सवारों का मुखिया बख़्तियार ख़िलजी भारत के इतिहास में कुछ ऐसा करने जा रहा था जिसकी कल्पना किसी भारतवासी ने ना की थी।
शेष है!

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ये कह कर ऐबक ने बख़्तियार ख़िलजी को बदायूँ कूच करने का आदेश सुनाया। महज़ दो सौ घुड़सवारों का मुखिया बख़्तियार ख़िलजी भारत के इतिहास में कुछ ऐसा करने जा रहा था जिसकी कल्पना किसी भारतवासी ने ना की थी।
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