Home विषयलेखक के विचार Liberalism : in the classical tradition Book राजीव मिश्रा की नज़र से

Liberalism : in the classical tradition Book राजीव मिश्रा की नज़र से

Rajeev Mishra

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पूरी पुस्तक अकाट्य तर्कों से भरी पड़ी है, लेकिन उसमें एक पूरा चैप्टर है Nationalism पर, जिससे मैं बिल्कुल सहमत नहीं हूं. लेकिन जब मैं माइजेस की दृष्टि से और पुस्तक जो कॉन्टेक्स्ट स्थापित करती है उस संदर्भ में देखता हूं तो सोच पाता हूं कि यूरोप के लिए nationalism का वह अर्थ नहीं था जो भारत के लिए राष्ट्रवाद का है, इसलिए उनके वे विचार भारत पर एप्लीकेबल नहीं होते.

पर अगर मैं पुस्तक के सिर्फ उन भागों के स्क्रीनशॉट पढ़कर माइसेस को कैंसल कर दूं, तो उनके साथ और क्या क्या कैंसिल हो जायेगा? माइसेस हैं कौन? वे वह वैचारिक वट वृक्ष हैं जिनसे पूरा का पूरा पश्चिमी उदारवाद (आज का लिब्रलिज्म नहीं, उदारवाद) निकला है.

माइसेस फ्रेडरिक हायेक के गुरु थे. फ्रेडरिक हायेक महान अर्थशास्त्री मिल्टन फ्रीडमैन के मित्र और सहयोगी थे, और ये दोनों थॉमस सॉवेल के गुरु और मेंटर थे. इन चार नामों में वैचारिक और आर्थिक स्वतंत्रता की पूरी एक परंपरा सिमटी हुई है. माइसेस को रिजेक्ट करने से वह पूरी परंपरा रिजेक्ट हो जाती है.

इसलिए किसी आधी अधूरी बात पर कोई मत बनाने से पहले वह बात किस कॉन्टेक्स्ट में कही गई है यह जानना जरूरी है. किसी ने भाई देवेन्द्र सिकरवार की पुस्तक “अनसंग हीरोज” की पीडीएफ भेज दी है. जिसने पीडीएफ बनाई है उनका उद्देश्य क्या रहा है समझना कठिन नहीं है. अगर पुस्तक बुरी है तो उसे और लोगों तक पहुंचाने के पाप के भागी क्यों बन रहे हो भाई? स्पष्ट है, समस्या पुस्तक के कॉन्टेंट से कम, व्यक्ति से अधिक है और उद्देश्य उसे आर्थिक हानि पहुंचाना है.

लेकिन हर बात का सकारात्मक पहलू भी होता है. इसी बहाने पुस्तक मुझतक पहुंच गई जिसके लिए वर्ष के अंत तक प्रतीक्षा करनी पड़ी होती. पर मैं पुस्तक पढूंगा तो उसके बौद्धिक श्रम का मूल्य चुका कर ही पढूंगा. मैंने देवेंद्र भाई से उनका अकाउंट नंबर मांगा है जिससे कि उन्हें पुस्तक का मूल्य प्रेषित कर दूं. आपसे भी अनुरोध है, अब जब किसी के ईर्ष्या या द्वेष वश पुस्तक आपके मोबाइल तक पहुंच गई है तो सुनी सुनाई बातों पर न जाते हुए पुस्तक को पढ़ ही लें, और उसका समग्र रूप में आकलन करें

फिर देखें, अगर पुस्तक मूल्यवान लगती है तो लेखक को उसके बौद्धिक श्रम का मूल्य चुका दें, और अगर कुछ तार्किक बौद्धिक असहमति है तो उसे एक स्वस्थ चर्चा में पटल पर रखें. हां, यह सिर्फ उनपर लागू है जिन्होंने जीवन में कभी कोई पुस्तक पढ़ी होगी. जो लोग शार्प शूटर्स हैं…निशानेबाजी की प्रैक्टिस जारी रखें…राज्यवर्धन सर रिटायर कर गए हैं, टैलेंट का बहुत स्कोप है.

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