लेकिन कोई चिट्ठी समय पर नहीं पहुंची. जुलाई 2019 की एक दोपहर एक ट्रक के साथ टक्कर लगने पर कार में सवार लड़की और उसके वकील बुरी तरह से घायल हो गए. चाची और उनकी बहन की मौत हो गई. लड़की की चचेरी बहन का दावा है, “चिट्ठी व़क्त से पहुंच जाती, पढ़ ली जाती तो ये जानें बच जातीं.” अब सीबीआई इस बात की जांच कर रही है कि ये दुर्घटना थी या साज़िश.
सुप्रीम कोर्ट को लिखी चिट्ठी पर जब मीडिया ने लिखा तब मुख्य न्यायाधीश ने खुद संज्ञान लेकर तत्काल सुनवाई की. उन्होंने सीबीआई को निर्देश दिया कि बलात्कार का वो मामला जिसमें चार्जशीट एक साल पहले दायर हो गई थी, लेकिन मुक़दमा शुरू ही नहीं हुआ, वो फ़ौरन हो और 45 दिन में पूरा भी किया जाए.
लड़की के बलात्कार और परिवार से जुड़े चारों केस दिल्ली ट्रांसफ़र किए गए और राज्य सरकार को लड़की के परिवार को 25 लाख रुपए अंतरिम मुआवज़ा देने का आदेश हुआ.
लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज अस्पताल में जब मैं लड़की की चचेरी बहन से मिली, तो बचा परिवार यानी लड़की की मां, तीन बहनें और छोटा भाई उसके साथ फ़र्श पर चादर बिछाकर बैठे थे.
लड़की की मां को सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बारे में बताया तो वो बोलीं, “चलो कुछ तो अच्छी ख़बर आई, बस अब मेरे देवर को भी रिहा कर दें तो हमें सहारा मिले, नहीं तो कौन ये लड़ाई लड़ेगा.”
इन सबमें से कोई पढ़ा-लिखा नहीं है. इनमें से किसी के हाथ में मैंने स्मार्टफोन तक नहीं देखा.
जो लड़ाई लड़ रही थीं, वो चाची नहीं रहीं. उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलनेवाली उनकी बहन भी नहीं.
सुप्रीम कोर्ट की दख़ल से लड़की और वकील को इलाज के लिए दिल्ली के एम्स अस्पताल लाया गया है, लेकिन दोनों की हालत गंभीर है.
वकील कोमा में बताए जा रहे हैं और लड़की वेंटिलेटर के सहारे ज़िंदगी की डोर पकड़े हुए है.
लड़की की चेचरी बहन ने कहा, “अब इंसाफ़ की उम्मीद जगी है तो ज़िंदगी जीने की वजह बुझ गई है.”
“यह सभी अपराध वास्तव में घटित हो चुके है और इनका विवरण विकिपीडिया और अन्य श्रोतो से लिया गया है इन अपराध को करने वाले अपराधियों को सजा दी जा चुकी है और कुछ मामलो में अभी फैसला आना बाकी है और मामला न्यायालय में है आप सब से निवेदन है की इनकी कहानियो को पढ़ कर इनकी प्रेरणा न ले”