जो घरेलू आलोचक हैं, उन पर हंसी और दया दोनों आती है. वे चीन की इस लाइन को रिपीट कर ‘राजनीति के सनातनीकरण’ या सनातन के राजनीतिकरण की बात कर रहे हैं, वे देश का नुकसान कर रहे हैं. वैसे, तकनीकी तौर पर भी देखें तो ‘भारत मंडपम्’ की तैयारी तो 2017 से हो रही थी, तो क्या इस सरकार के नुमाइंदों को यह सपना आया था कि 2023 में जी20 का समिट होगा और वहीं होगा? क्या कोणार्क के सूर्य-मंदिर और नालंदा के भग्नावशेष राजनीति हैं, क्या प्राचीन वैदिक वाद्ययंत्रों से लेकर जनजातीय कला और यंत्रों का प्रदर्शन राजनीति है, अगर जल बहार, जलतरंग, विचित्रवीणा, सरस्वती वीणा जैसे वाद्ययंत्र बज रहे हैं तो यह राजनीति है, दिलरुबा, ढंगली, सुंदरी जैसे लोकवाद्यों और लोकनृत्य का आनंद अगर विदेशी मेहमान ले रहे हैं तो क्या यह राजनीति है, नटराज की नृत्य मुद्रा क्या राजनीति है, भारत को भारत के नाम से पुकारा जाना क्या राजनीति है, 26 पैनल्स के माध्यम से ‘वॉल ऑफ डेमोक्रेसी’ के बहाने भारत के 5000 वर्षों के इतिहास को बताना क्या राजनीति है, ‘मदर ऑफ डेमोक्रेसी’ को पारिभाषित करना क्या राजनीति है, वैदिक सभ्यता से लेकर रामायण-महाभारत, बौद्ध-जैन धर्म, महाजनपद, कौटिल्य, पाल साम्राज्य, लखीमपुर के ताम्रपत्र, तमिलनाडु के प्राचीन शहर, छत्रपति शिवाजी इत्यादि को दिखाना क्या राजनीति है? दरअसल, सात दशकों तक भारत की संस्कृति को छिपाना और दिल्ली-आगरा तक महदूद रखना ही राजनीति था.
———————-
भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के सलाहकार सदस्य और हमारे प्रिय अग्रजों में से एक Awanish P. N. Sharma ने जी20 में भारतीय संस्कृति की ठसक और धमक से प्रस्तुति पर हमसे जमकर बात की और हरेक बात पर सनातन का विरोध करनेवाले कीड़ों को धो डाला।
सुनना चाहें तो पॉडकास्ट का भी लिंक है नीचे, पढ़ना चाहें तो आर्टिकल का भी लिंक है।
जय सियाराम…
Written By : Vyalok Swami