द वैक्सीन वॉर कमर्शियल यानी बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप-डिजास्टर की ओर बढ़ रही है। पहले दिन बहुत मामूली कलेक्शन किया है। 800 स्क्रीन्स पर 80 लाख ओपनिंग रही है।
यक़ीनन, ऐसे कंटेंट मास ऑडियंस को कतई न लुभाते है, उन्हें सिर्फ़ मसाला मांगता है।
विवेक अग्निहोत्री ओटीटी से ओवर ऑल प्रॉफिट में रहेंगे। मेरे नजरिये से सीधा ओटीटी रिलीज देते तो बहुत बढ़िया मामला बैठता। दर्शकों की रेंज भी बढ़ती, परंतु नज़दीकी सिनेमाघरों में फुकरे-3 के साथ क्लेश में दर्शकों की प्राथमिकता में फुकरे ही रहेगी….
मैंने ट्रेलर के वक्त लिखा था कि ट्रेलर काफ़ी फीका है, फ़िल्म बेहतर निकलेगी। दरअसल, लोग निर्देशक के कंटेंट ट्रेलर देखकर मन बनाते है। अंत में वर्ड ऑफ माउथ आता है। वैक्सीन वॉर में सिनेमाई एलिमेंट्स की कमी से दर्शक दूर रहेंगे। कमोबेश यही नजारा आर माधवन की रॉकेट्री में देखने को मिला था।
फिल्में दोनों बेहतरीन है।
वैज्ञानिक भाषा में समझ के चलते ऐसा रहता है। लेखक इसमें राजनीतिक एंगल का तड़का लगा देते तो मास को खींचने में बहुत मदद मिलती। ख़ैर
अभी विकास बहल की गणपत-1 का ट्रेलर देखा है, ठीक है। लेकिन अमिताभ बच्चन को कोई भी किरदार दे दें। डाइलॉग डिलवरी एक्सेंट सेम नाक के स्वर रहता है, तो उनकी बॉडी लैंग्वेज में कोई फर्क नजर न आता…अनुराग कश्यप ने भी ऐसी ही कहानी लिखी हुई है उसे शाहरुख के साथ बनाने की बातचीत चल रही थी। टाइटल में कालीचरण है। बात बन सकी…ऐसे कंटेंट बॉक्स ऑफिस पटल पर रिस्की है। कोई पक्का भरोसा नहीं रहता है।
गणपत और बॉम्बे वेलवेट की थीम एक लाइन में नजर आ रही है, गणपत भविष्य में प्लाट है तो बॉम्बे पीरियड थी। बाक़ी देखते फ़िल्म क्या दिखलाती है।