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फुद्धिजीवी माफिया भाई भाई

Isht Deo Sankrityaayan

by Isht Deo Sankrityaayan
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बिना किसी न्यायिक आदेश के भी नगर निगमों और शहरों के विकास प्राधिकरणों में बैठे आईएएस या पीसीएस तुगलकों का जब मन होता है कृषिभूमि, पार्कभूमि या किसी भी तरह सरकारी भूमि बताकर गरीबों के घर गिरा दिए जाते हैं। उनकी जिंदगी भर की कमाई मलबे में बदल जाती है।

मैंने एक तानाशाह अफसर के आदेश पर इसी तरह गोरखपुर में हजारों मकान और दिल्ली में लाखों दुकानें ढहाए जाते और सील किए जाते हुए देखा है। किसी फुद्धिजीवी ने जरा सा चूँ तक नहीं किया था।

जब भूमाफियाओं और सरकारी कर्मचारियों की सांठगांठ के शिकार गरीबों के मकान गिराए जाते हैं तब कोई प्रदूषण नहीं फैलता।

उनकी जीवन भर की खून-पसीने की कमाई, जिसमें से आज के जमाने में बचत एक दुःस्वप्न जैसा ही है, राष्ट्रीय धन नहीं होती है। उसकी बर्बादी राष्ट्रीय धन की बर्बादी नहीं होती है।

राष्ट्रीय धन की बर्बादी, मजदूरों के श्रम का अपमान, उपयोगिता का सिद्धांत और प्रदूषण की समस्या… ये सारी बातें केवल माफियाओं की संपत्तियों पर लागू होती हैं।

क्या किसी दूसरे उपयोग में केवल गगनचुंबी अट्टालिकाएँ ही लाई जा सकती हैं? मामूली नन्हे घरों के होने का कोई अर्थ नहीं है?

फुद्धिजीवियों के पास सद्बुद्धि केवल आतंकवादियों और माफियाओं के लिए आती है।

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