20 वर्षीय वेटलिफ्टर अचिंत्य शिउली ने कल रात भारत की झोली में तीसरा स्वर्णपदक डाल दिया है। यह भी जान लीजिए कि 11 वर्ष की अबोध आयु में पिता को खो चुके अचिंत्य शिउली को दैनिक श्रमिक मां ने बहुत भीषण जीवन संघर्ष के साथ पाला पोसा और अचिंत्य शिउली ने असाध्य असहनीय कठिन कठोर परिस्थितियों से जूझते हुए स्वंय को शिखर पर पहुंचाया है। यह कैसे हुआ होगा.?
इसकी कल्पना कीजिए तो मन सिहर उठता है और शिउली सरीखे नौजवान के सम्मान में सिर श्रद्धा से झुक जाता है, क्योंकि अचिंत्य शिउली केवल खिलाड़ी मात्र नहीं हैं। इसके बजाए देश के करोड़ों युवाओं के लिए एक आदर्श उदाहरण हैं। उनकी कहानी देश के हर घर तक पहुंचनी चाहिए। लेकिन आतंकी बुरहान वानी के घर की देहरी अपने कदमों से घिस देनेवाले न्यूजचैनलों का कोई रिपोर्टर क्या शिउली के घर पर दिखा आपको.? इसीलिए मैं कहता हूं कि इनकी पत्रकारिता फूहड़ है, स्तरहीन है, बेहूदा और भद्दी है।
जनसरोकार से इसका कोई लेना देना नहीं है। अचिंत्य शिउली की कहानी जैसी कुछ और कहानियां इस राष्ट्रमंडल खेलों में जन्मी हैं और कुछ अगले कुछ दिनों के गर्भ में आकार ले रही हैं।
हर्ष का विषय यह भी भारत ने 15 सदस्यीय वेटलिफ्टिंग टीम राष्ट्रमंडल खेल में भेजी है। अबतक 7 वेटलिफ्टर मैदान में उतरे हैं। इनमें से 6 वेटलिफ्टरों ने 3 स्वर्ण 2 रजत 1 कांस्य पदक जीता है।
संभवतः राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय वेटलिफ्टरों का अबतक का यह प्रदर्शन सर्वश्रेष्ठ है। आशा है कि शेष 8 वेटलिफ्टर भी भारत को निराश नहीं करेंगे।