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भारत में आयकर देने वालों को इन बिंदुओं पर भी गौर करना चाहिए

Vivek Umrao

by Umrao Vivek Samajik Yayavar
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भारत सरकार को अप्रैल 2021 से मार्च 2022 के वित्तीय वर्ष में कुल लगभग 27 लाख करोड़ रुपए टैक्स प्राप्त हुआ। इसमें से लगभग 14 लाख करोड़ रुपए व्यक्तियों व कंपनियों इत्यादि सभी के द्वारा डायरेक्ट-टैक्स भारत सरकार को प्राप्त हुआ।

जबकि केवल भारत सरकार ही अपने कर्मचारियों को ही सालाना लगभग 7 लाख करोड़ रुपए वेतन व पेंशन देती है। भारत के राज्यों की राज्य-सरकारों द्वारा उनके कर्मचारियों को दिया जाने वाला वेतन व पेंशन तो इसमें जोड़ा ही नहीं गया है, जो कि भारत सरकार द्वारा प्राप्त कुल डायरेक्ट-टैक्स 7 लाख करोड़ रुपए से कई गुना अधिक है।

वैसे तो अधिकतर सरकारी कर्मचारी ऐसा कोई काम नहीं करते हैं, जिससे सरकार को आय होती हो। जो सरकारी PSUs हैं भी तो भारत सरकार एक के बाद एक बेचती जा रही है क्योंकि सरकार के अनुसार ये घाटे में चल रहे हैं। जाहिर है कि अधिकतर कर्मचारियों से भारत सरकार को आय होती नहीं, जिन PSUs से आय होती भी है तो अपवाद छोड़ वे घाटे में चल रहे हैं, जाहिर है कि सरकार को इन PSUs के कर्मचारियों के वेतन का भी जुगाड़ करना पड़ता है।

भारत सरकार के जैसे ही राज्य सरकारों के सरकारी कर्मचारियों में से अधिकतर कर्मचारियों से सरकार को आय नहीं होती है।

अब सबसे बेसिक सवाल यह आता है कि भारत सरकार व राज्य सरकारों के कर्मचारियों के वेतन व पेंशन देने के लिए पैसा कौन देता है। (आयकर जैसी फालतू बात नहीं कीजिएगा, इस बारे में शुरुआत में ही बात हो चुकी है)।

तो सबसे पहले फंडा यह क्लियर होना चाहिए, कि देश की गाड़ी आयकर से नहीं चलती है। आयकर छोड़िए, भारत सरकार को आयकर सहित जो कुल टैक्स पूरे देश से मिलता है, वह भी उससे बहुत कम होता है, जितना भारत सरकार व राज्य सरकारें अपने कर्मचारियों को वेतन व पेंशन देती हैं।

देश की गाड़ी चलती है GDP से, GDP पैदा करता है देश का आम आदमी, वह आम आदमी जिसे यदि थोड़ी बहुत सुविधाएं मिल जाती हैं तो उसे मुफ्तखोरी इत्यादि-इत्यादि टाइप्स की शब्दावली की फूहड़ गालियां देते हुए खुद को बड़का क्रांतिकारी, देशभक्त, विकासशील, प्रगतिशील मानकर गर्व किया जाता है।

भारत की GDP है लगभग 253 लाख करोड़। भारत सरकार को सभी प्रकार कुल टैक्स प्राप्त होता है लगभग 27 लाख करोड़, कुल डायरेक्ट-टैक्स प्राप्त होता है लगभग 14 लाख करोड़। टैक्स छोड़िए, भारत की कुल GDP का बहुत बड़ा हिस्सा सरकारी कर्मचारियों को वेतन, पेंशन व भत्ते देने में खर्च होता है। यदि गैर-मुद्रा व्यक्तिगत सुविधाओं को भी जोड़ लिया जाए तो यह आकड़ा कई गुना और अधिक बढ़ जाता है।

भारत के सरकारी कर्मचारियों (विशेषकर नौकरशाही को) को गैर-मुद्रा अचल संपत्तियों रूपी जो अनाप-शनाप सुविधाएं दी जाती हैं, केवल इन्हीं संपत्तियों को यदि देश की इकोनोमी में ले आया जाए तो भारत की GDP रातों-रात दुगुना हो जाएगी।

यदि आप सचमुच में ही भारत के प्रति ईमानदारी से चिंतित हैं, यदि आप सच में ही विचारशील हैं, यदि आप सच में ही इकोनोमी की वास्तव में गहरी समझ रखते हैं, तो आपको यह अलग से बताने की जरूरत नहीं कि भारत में कम से कम आम आदमी तो मुफ्तखोर नहीं ही है, क्योंकि जितना टैक्स वह देता है, उसका रंचमात्र ही वापस पाता है, उसका खुद का अपना हिस्सा ही उससे बहुत गुना अधिक बनता है जितना वह पाता है।

शर्त सिर्फ यह कि यूनिवर्सिटी की डिग्री के आधार पर, शेयर बाजार में सट्टा लगाकर हारने-जीतने के आधार पर, शेयरों के चढ़ने उतरने के ग्राफ की गुणा गणित के आधार पर, आय-व्यय के लेखा-जोखा करने की तीन-तिकड़म वाली गुणा-गणित के आधार पर, इत्यादि-इत्यादि के आधार पर खुद को इकोनोमिस्ट मानने की बेसिरपैर व सतही मानसिकता को रद्दी के ढेर में डाल दीजिए। क्योंकि इकोनोमी एक व्यापक व सूक्ष्म विधा का नाम है, सतहीपने या तीन-तिकड़म का नहीं।

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