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क्या नीदरलैंड व चीन के लोग नास्तिक हैं

by Umrao Vivek Samajik Yayavar
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लोगबाग अपनी-अपनी पसंद की, अपने-अपने एजेंडों, अपने-अपने स्वार्थों इत्यादि के आधार पर चुनाव करके इन फर्जी व बेसिरपैर की बकवासों को सार्वभौम-सत्य व चेतनशीलता व जागरूकता के मानदंड के सबूत के तौर पर फैलाते रहते हैं। इसी तरह की फर्जी व बेसिरपैर की बकवासों में है कि नीदरलैंड्स में लोग नास्तिक हैं इसलिए जेलें खतम हो गई हैं या चीन में लोग नास्तिक हैं। ये दोनों बाते ही फर्जी हैं, बकवास हैं, झूठ हैं।

 

नीदरलैंड्स में सभी लोग नास्तिक नहीं हैं। लोग धर्मों को मानते हैं, लोग अपने-अपने पूजागृहों जैसे चर्च, मंदिर, मस्जिद इत्यादि में जाते हैं। जेल वाली कहानी व कारण बिलकुल अलग हैं। नास्तिकता आस्तिकता से लेना-देना नहीं।

 

चीन में कम्युनिस्ट पार्टी का संविधान कहता है कि यदि कोई पार्टी के पद पर है तो वह आस्तिक नहीं हो सकता है। चीन में कम्युनिस्ट पार्टी का मतलब देश का संविधान, पार्टी का मतलब सरकार।
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यदि कोई चीन कम्युनिस्ट पार्टी का पदाधिकारी है तो वह मजबूरी में खुद को नास्तिक कहता है, तब भी उसकी पत्नी उसके माता-पिता, उसके भाई-बहन, उसके बच्चे आस्तिक हो सकते हैं।
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चीन में कम्युनिस्ट पार्टी के पदाधिकारी लोग भी चीनी परंपराओं व कर्मकांडों में सक्रियता से भाग लेते हैं। यहां सबसे बड़ा झोल यह है कि चीन के ये लोग परंपरा व कर्मकांडों को धार्मिक होना नहीं मानते हैं, उसको अपनी जीवन-शैली मानते हैं। (यदि यह थियरी दुनिया के किसी भी समाज में लागू कर दी जाए तो दुनिया के अधिकांश लोग अपने आप अगले ही क्षण नास्तिक होने की श्रेणी में आ जाते हैं)।
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चीन के अधिकतर लोग धर्मभीरु हैं। चीन में कई धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं। यहां तक कि खुद चीन की सरकार दुनिया के अनेक देशों में चीनी संप्रदायों के मंदिर बनवाकर उपहार में देती रहती है।
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यदि अंतर्राष्ट्रीय मानकों की बात की जाए तो चीन की लगभग आधी जनसंख्या गरीब है। हां यदि चीनी सरकार के आकड़ों की बात की जाए तो 1% से भी कम लोग गरीब हैं। चीन सरकार के बिना अपवाद सभी आकड़े फर्जी व झूठ का पुलंदा ही रहते हैं। कारण है कि चीन की पूरी इकोनोमी ही शोबाजी व अपने ही देश के लोगों के जबरदस्त शोषण पर आधारित है। सामंती व तानाशाही मानसिकता वाले समाज के लोगों को सैडिस्टिक नशे में रहने में बहुत मजा आता है, लोगों को लगना चाहिए कि हमारी व हमारे बच्चों की ऐसी-तैसी भले ही होती रहे, हमारा जीवन भले ही नर्क रहे लेकिन हमारा देश विश्वगुरू तो है।
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चीन में बीसियों करोड़ लोगों के पास खाने को नहीं है, फिर भी जीवित रहते हैं, जीवित रहने की जद्दोजहद में लगे रहते हैं। संपत्ति के बटवारे में जमीन आसमान का अंतर है। इन स्थितियों में भी आदमी यदि मुस्कुरा कर जीवित बना रहता है तो यह केवल और केवल धार्मिक नशे ही संभव है। चीन की धूर्त व बर्बर सत्ताएं इतनी मूर्ख नहीं कि लोगों को धार्मिक नशे से अलग करके खुद अपने ऊपर खतरा मोल लें।
भारत के सोशल मीडिया में बहुत फर्जी बकवासें अकाट्य सत्य के रूप में फैलाई जाती हैं, पोषित की जाती हैं। बहती गंगा में हाथ धोने वाले बहुत लोग तो ऐसे होते हैं, जो इस अहंकार में रहते हैं कि वे शोध करते हैं, ऐसे लोगों से उनकी फर्जी बकवास वाली पोस्टों पर आप कुछ कहिए तो खुद को महा-विद्वान मानते हुए आपको बताएंगे कि वे शोध करते हैं। शायद देशी विदेशी अखबारों की कुछ खबरें पढ़ना या अल-जजीरा व इस जैसे दूसरे वाहियात चैनल्स की खबरें देखना इत्यादि ही इन लोगों के लिए शोध करना होता है। अल-जजीरा की पैदा होने की कहानी फिर कभी। अभी यह समझिए कि कतर देश का प्रेस-फ्रीडम में दुनिया में बहुत नीचे का स्थान है। अल-जजीरा एक समूह है, अल-जरीरा इंटरनेशनल जिसका एक छोटा सा हिस्सा है, इस हिस्से का चेहरा अरब देशों की राजनीति में एजेंडों को सेट करने के लिए दिखावटी चेहरा अलग रखा गया है, ताकि दबाव बनने में सहूलियत हो। वरना पूरा अल-जजीरा चैनल समूह रात-दिन भांडगिरी ही करता है।
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