भजप्पा (जो अभी वाली है) किसी भी घटना को इवेंट बना देने में माहिर है। आज तक किसी ने राष्ट्रपति चुनाव में जीत के बाद पूरे देश में विजय-जुलूस निकालने की सोची भी नहीं होगी, लेकिन ‘पार्टी विद अ डिफरेंस’ ने यही कर दिया है। द्रौपदी मुर्मू की जीत को आदिवासी-अस्मिता से जोड़कर एक साथ शहरी नक्सलों, वाम-कांग्रेस युति और जहरीले जिहादियों को भन्नाटे में छोड़ दिया है।
इस भजप्पा का मुकाबला करने को कौन हैं…
एक चिराधेड़ बालक, यूपी में अहंकारी अखिलेश और बिहार में 30 साल में ही 50 साल की तरह तोंद निकाल कर चार लाइन भी ठीक से नहीं बोल पाने वाला 09वीं फेल तेजस्वी। मजे और दुख की बात है कि बेहद पढ़े-लिखे अग्रजों को भी इन्हीं में जन्नत दिखाई देती है। वजह, केवल यह कि मोदिया को हटाना है।
कमाल है, मोदीजीवा से जलन की इतनी घनघोर वजह क्या हो सकती है?
इस पर खैर कल…
फिलहाल, तो भजप्पा को बधाई और इस बात की धर्षणा भी कि चुनावी जीत उसे चाहे जितनी भी मिलती जाए, उसकी वैचारिक प्रखरता और दृढ़ता का आकर्षण बहुत बुरी तरह से कम हो रहा है।