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वामपंथियों ने अपने सबसे बड़े दुश्मन के रूप में हिटलर को स्थापित कर रखा है, और जिस किसी को अपना शत्रु घोषित करना होता है उसे फ़ासिस्ट की उपाधि दे देते हैं. अक्सर अपने लोग उनके इस ट्रैप में फँसते हैं और हिटलर की तारीफ शुरू कर देते हैं.
इस ट्रैप के दो बड़े नुकसान हैं…पहला, कि हिटलर को own करना बहुत ही कॉस्टली है. अपनी बेहद क्लोज्ड सर्किल के बाहर दुनिया में आप कहीं भी हिटलर की तारीफ नहीं कर सकते.
और दूसरा सबसे बड़ा नुकसान है : हिटलर हमारा हो ही नहीं सकता….वह अपनी नीतियों, विचारों और टैक्टिक्स में वामपंथी ही था. और यह एक तथ्य है जिसे हमसे छुपा कर वामपंथियों ने उसे दक्षिणपंथी विचारधारा का प्रतिमान घोषित कर रखा है.
फासिज्म और कम्युनिज्म में बहुत मामूली अंतर है. फासिज्म नेशनल सोशलिज्म था, और कम्युनिज्म इंटरनेशनल सोशलिज्म. बस, यहाँ यह अंतर खत्म हो जाता है. यानि हिटलर और मुसोलिनी ने अपने अपने देश में कम्युनिज्म की फ्रेंचाइजी खोली, पर मुख्य कंपनी को कमीशन नहीं दिया. बस, इतनी सी बात पर बिजनेस इंटरेस्ट का कॉन्फ्लिक्ट हो गया और हिटलर की फ्रेंचाइजी कैंसिल कर दी गई.
जोनाह गोल्डबर्ग ने अपनी पुस्तक “लिबरल फ़ासिस्ट” में हिटलर, मुसोलिनी और कम्युनिज्म के सिद्धांतों और नीतियों की तुलना की है. पर यह पुस्तक तो हाल की है. आपको लग सकता है कि किसी ने यह शगूफा छोड़ा हो.
तो पीछे चलते हैं…नॉबेल विजेता ऑस्ट्रियन अर्थशास्त्री फ्रेडरिक हायेक ने अपनी पुस्तक “रोड टू सर्फ़डम” में समाजवादी सरकारों की नीतियों की समीक्षा करने के लिए जिस देश का उदाहरण चुना, वह रूस नहीं नाज़ी जर्मनी का उदाहरण था. पूरी पुस्तक में नाज़ी जर्मनी और फ़ासिस्ट इटली समाजवादी सरकारों के रूप में प्रस्तुत किये गए हैं. और यह पुस्तक द्वितीय विश्वयुद्ध के बीच लिखी गयी है.
प्रसिद्ध ब्रिटिश समाजवादी अर्थशास्त्री जॉन केन्स ने भी समाजवादी नीतियों के लिए मुसोलिनी और स्टालिन की प्रशंसा की है. जब रूज़वेल्ट ने अमेरिका में न्यू डील के प्रयोग शुरू किए तो उनके मुख्य नीति निर्धारकों में से एक रेक्सफ़ोर्ड टगवेल ने रूस के साथ साथ इटली का दौरा किया और दोनों देशों की अर्थव्यवस्था की खूब प्रशंसा की.
पर हम तो यह जानते हैं कि दूसरे विश्वयुद्ध में जर्मनी रूस से लड़ा था…तो दोनों एक ही कैसे हो सकते हैं?
ऐसा है कि गैंगस्टर्स की आपस की लड़ाई होती ही रहती है. डॉन के बीच शूटआउट चलती ही रहती है. स्टालिन ने करोड़ों लोगों को मरवाया और जेल भिजवाया. इसमें उसके एक समय के विश्वस्त सहयोगी भी शामिल थे. स्टालिन ने ट्रोट्स्की को भी मरवाया, जो किसी भी समय स्टालिन से अधिक प्रतिष्ठित कम्युनिस्ट आईडीयोलॉग था. स्टालिन कम पढ़ा लिखा पर अधिक चतुर, स्ट्रीट स्मार्ट था. उसे ट्रोट्स्की से खतरा लगा, मरवा दिया. चीन की तो कहानी ही और है…कल्चरल रेवोल्यूशन के नाम पर माओ ने अपने ही सारे सहयोगियों को जेल में डाल दिया या मरवा दिया.
यह वामियों की पुरानी आपस की लड़ाई है. हमें उसमें साइड लेने से कुछ नहीं मिलना. पर हिटलर को वामपन्थी कहने से वामियों को जो खुजली लगती है वह देखने का मजा ही कुछ और है. भगत सिंह को हथियाने की कोशिश करने वाले जाएँ, पहले अपने हिटलर को अपनाएँ.

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