गतांक से आगे…
अकबर काल में कांगड़ा नगरकोट के नाम से विख्यात था और इन बातों के लिए जाना जाता था :
~ कटी नाक की शल्य चिकित्सा
~ नेत्र दोष की चिकित्सा
~ एक मंदिर जहाँ भक्त अपनी जीभ काट कर माँ भवानी को अर्पित करते है और कुछ दिनों में जीभ फिर वापस उग जाती है।
कांगड़ा किले में ब्रजेश्वरी देवी मंदिर है और पैंतीस मील दूर ज्वाला जी मंदिर । ज्वाला जी मंदिर वो स्थल है जहाँ माँ सती की जिव्हा गिरी थी। इसी मंदिर को ज्वालामुखी मंदिर कहते है – यहाँ नौ ज्वालायें निरंतर प्रज्वलित है।
1572 में अकबर ने नगरकोट को बीरबल को दें दिया और अपने सिपहसालार हुसैन कुली खान को फरमान दिया कि नगरकोट पर हमला किया जाए। नगरकोट पर उस समय बाल राजा बिधिचंद का राज्य था। क़िले में इस मंदिर में अकबरी सेना ने जम कर विध्वंस मचाया – दो सौ श्यामल गायो की हत्या कर उनका रक्त जूतों में भर मंदिर की दीवार और छतो पर लगाया गया । सब पुजारी मार डाले गए । तीन पन्नो का ये खूनी वृतांत तबक़ात -इ-अकबरी नामक किताब में दर्ज है जो अकबर के मीर बक्शी निजामुद्दीन अहमद ने लिखी है। सबूत के तौर पर इस किताब के वो पन्ने भी देखिये – पीली हाईलाइट में। बाद में चूँकि कुली खान को पंजाब भागना पड़ा था तो ये फ़तेह पूर्ण नहीं हो पायी। मंदिर का विध्वंस लेकिन इन दानवो ने कर दिया था
इस बात पर कुछ लोग कहते है ये मंदिर ज्वाला जी मंदिर था और कुछ ब्रजेश्वरी देवी मंदिर बताते है। जो भी मंदिर था – अकबरी फ़ौज ने उसे बक्शा नहीं था। कांगड़ा मंदिर की गाथा अभी शेष है। आगे पढ़िए अकबरनामा , आईने अकबरी और कुछ और किताबो का सन्दर्भ। विदेशी यात्रियों का भी विवरण शेष है।
सीरीज लम्बी होने के क्षमा – लेकिन चूँकि अब बात उठी है तो खुदाई पूरी होनी चाहिए !