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Watching Our Planet
बच्चे डेविड एटेनबरो की डॉक्यूमेंट्री “OUR PLANET” देख रहे हैं. मैं भी देख रहा हूँ, और मैं जब भी ऐसी कोई डॉक्यूमेंट्री देखता हूँ तो प्रकृति के नियम को मानव सभ्यता पर लागू होते देखने से बच नहीं पाता हूँ.
अंटार्कटिक में समुद्र के अंदर मैकेरेल मछलियों का झुंड दिखाई दे रहा है. नीचे से डॉल्फिनों का झुँड उनपर आक्रमण कर रहा है. उन डॉल्फिनों से बचने के लिए मैकेरल के झुण्ड समुंदर की सतह की ओर भागते हैं. तब ऊपर से पक्षियों का झुंड उनपर झपटता है और सतह से 6 मीटर अंदर तक घुस कर उन मछलियों को पकड़ता है. तो उन डॉल्फिन्स और पक्षियों की जुगलबंदी में मछलियाँ शिकार बनती हैं.
आकाश में उड़ने वाले पक्षियों और समुंदर के अंदर के डॉल्फिन्स में क्या संबंध है? सामान्यतः यह सम्बन्ध दिखाई नहीं देता, सिवाय उनके जो पर्यावरण के इस संबंध का अध्ययन करते हैं.
भारत में भी बहुत से लोग मिलते हैं जिन्हें ईसाई मिशनरियों, इस्लामिक जिहादियों और लिबरल वामपंथियों के बीच का सम्बंध दिखाई नहीं देता. और इनके बीच में फँसा हिन्दू समाज मैकेरल मछलियों के झुँड से ज्यादा कुछ नहीं है. एक ओर से भगाया हुआ यह दूसरी ओर भागता है. इस्लामिक आतंक की मार झेल कर यह लिबरल सेक्युलरों के जाल में फँसता है जहाँ ईसाई मिशनरियाँ हमें अपनी खुराक बनाती हैं.
एक और दृश्य है…अफ्रीका में जँगली कुत्तों का झुँड जंगली भैंसों (Wildebeest) के एक झुँड पर शिकार करने के लिए हमला करता है. जंगली कुत्ते वयस्क भैंसे का शिकार नहीं कर सकते, पर उनके बच्चों का शिकार कर सकते हैं. तो भैंसों का झुंड अपने बछड़ों को अपने बीच में छुपा लेता है. जँगली कुत्ते उसके बछड़े को झुण्ड से अलग और अकेला करने के लिए घिराव करते हैं पर वह अपनी पूरी ताकत लगा कर झुण्ड के बीच में घुस जाता है.
इस्लाम, क्रिश्चियनिटी और वामपंथ…ये तीनों प्रिडेटर सभ्यताएँ हैं. इनके बीच में मुझे हिन्दू एक निरीह शिकार की तरह नज़र आता है. पर दुनिया में जो भी स्पीशीज अपना अस्तित्व बचा कर रख पाती हैं, उनमें दो में से एक मेकैनिज्म होती है. या तो उनका संख्या बल होता है जिससे कि शिकार होने के बावजूद उनकी पर्याप्त संख्या बची रह जाती है….जैसा कि मैकेरल मछलियों का झुँड था, जिसमें लाखों मछलियाँ थीं.
या फिर उनमें संगठन का बल होता है. जैसा कि जँगली भैंसों का झुँड था…यह संगठित तरीके से अपने बछड़ों को अपने झुँड के बीच में छुपा कर दौड़ता है और उन्हें जँगली कुत्तों से बचाता है.
हिन्दू मूलतः शिकारी (predator) नहीं, शिकार (prey) सभ्यता हैं. और इतिहास में अपने अस्तित्व के लिए हम अपनी संख्या और अपने संगठन… दोनों मैकेनिज्म पर निर्भर रहे हैं.
पर आज ये दोनों मैकेनिज्म निशाने पर हैं. हिन्दू समाज ने परिवार नियोजन के चारे को निगल लिया है. जन्मदर कम होती जा रही है. उधर हिन्दू को सेक्युलरिज्म की घुट्टी पिला दी गई है जिससे संगठित होने के अवसर पर हम अपराध बोध से ग्रस्त रहें.

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