क्रांति_के_खतरे
निर्माण विहीन क्रांतियां प्रायः सड़ जाती हैं!” स्व.नरेंद्र कोहली जी की रामकथा का कालजयी वक्तव्य है।
फ्रांस की क्रांति का उदाहरण सामने है जो शुरू तो हुई लेकिन स्पष्ट लक्ष्य न होने के कारण गिलोटिन पर चढ़ गई।
भारत में इ स्लामिक उद्दंडता पिछले हजार वर्षों से एक समस्या रही है जिसे इस लंबे अंतराल में केवल तीन व्यक्तियों ने समझा और उसका उपचार बताया था।
प्रथम थे लक्ष्मण के वंशज महाराज मिहिरभोज प्रतिहार।
इसके बाद सीधे हजार साल बाद एक और महापुरुष जन्मा जो इस समस्या को हल करने के नजदीक था लेकिन मूर्ख जातिवादियों ने उसके प्राण ही हर लिये- पेशवा बाजीराव।
तीसरे थे बाबा साहेब अंबेडकर जिन्होंने भविष्य पढ़ते हुए भारत के संपूर्ण मु स्लिमों को पाकिस्तान स्थानांतरित करने की मांग रखी जिन्होंने पहले ही लगभग 100% मत देते हुए पाकिस्तान बनवा लिया था।
अब लगभग सत्तर साल बाद फिर एक मौका आया है लेकिन वैश्विक परिस्थितियों के कारण पुराने तरीके प्रयुक्त नहीं हो सकते इसलिये हमें इनके तरीके इनपर पलटने होंगे।
आपने देखा है तबलीगियों को?
घोर आतंकवादी विचारधारा के प्रचारक लेकिन आप उसे सार्वजनिक रूप से कितना भी उल्टा सीधा बोलिये, वो मुस्कुराता रहेगा।
सीखिए उनसे।
जहाँ भी आप डोमिनेंसी, चाहे वह संख्यात्मक हो या एप्रोच की, अपने संपर्क में आने वाले मु स्लिम को ‘घर वापसी’ का न्योता दो।
सरकार उनपर अंकुश लगा सकती है कुछ समय के लिए और उनका मनोबल गिरा सकती है पर लंबे समय तक रोकना मुश्किल है खासतौर पर हिंदुओं का क्या भरोसा किस बात पर ‘भाजपा तेरी खैर नहीं’ करने लगें।
खैर! जानते हैं वे मस्जिद पर झंडा लगाने को क्यों उछाल रहे हैं?
क्योंकि पहली बार उन्हें Retaliation का भय हुआ है, पलटवार का डर सता रहा है। ऐसे में अगर कोई उनसे घर वापसी का प्रस्ताव करता है तो उसका रहासहा मनोबल भी टूट जाएगा क्योंकि यह मजहब केवल डोमिनेट होने पर ही फैलता है और हिंदू ने कभी इस तरह डोमिनेट होकर घर वापसी का प्रस्ताव किया नहीं।
इसके अलाव अब वे विनम्रता दिखाते हुए राम-राम, हम तो हिंदू ही थे, राम तो हमारे पुरखे हैं — टाइप का अल तकैय्या करेंगे और इससे आपको शांत नहीं हो जाना है बल्कि घर वापसी का प्रस्ताव और तीव्रता से देना है जिससे उनके असंतुष्ट लोग हिम्मत दिखाकर बाहर आ जाएंगे और बाकी की हिम्मत टूटेगी।
अब रही बात शादी-ब्याह की तो
1)सैक्यूलर लिबरल हिंदू अभी भी काफी हैं। 

2)जब गये थे तो क्या शर्त रखकर गये थे इसलिये कोई लॉजिक नहीं लेकिन फिर भी वे उसी प्रकार अपनी शादियां कर सकते हैं जैसे पहले करते आये थे यानि अपनी बिरादरी के घर वापिसी करने वाले मु स्लिमों के बीच।
3)आर्यसमाज मंदिर खुले ही हैं अंतर्जातीय विवाह के लिए। चूंकि अब हिंदू बन चुके होंगे तो कोई दिक्कत आएगी नहीं।
लेकिन इस सबकी शुरूआत तभी होगी जब हर हिंदू घर वापसी के अभियान को धार्मिक मठाधीशों व मोदी पर न छोड़कर स्वयं हिंदुत्व का स्टैक होल्डर बनेगा।
ध्यान रहे मोदीजी द्वारा निर्मित यह डोमिनेंसी लंबे समय तक नहीं रहेगी और वे भी मोदी के जाने का इंतजार कर रहे हैं।
क्रांति के साथ निर्माण नहीं किया तो रक्त की नदी में तैरने की तैयारी कर लो।