यह प्रश्न अक्सर उठता रहता है कि कृष्ण ने दाऊ के हाथों मरने जा रहे जरासंध को जीवनदान क्यों दिया?
सालों तक सोचने के बाद मुझे दो कारण ही समझ आये–
1)अगर जरासंध मर जाता तो कुरु-पांचालों में उसके क्षेत्रों को अधिकृत करने के लिए नया संघर्ष शुरू हो सकता था और पुत्रमोहान्ध धृतराष्ट्र जरूरत से ज्यादा शक्तिशाली हो सकता था। यानि गंगा के मैदान का शक्तिसंतुलन भंग हो सकता था क्योंकि यादव गणसंघ तो पहले ही सौराष्ट्र की ओर निकल आया था।
2)यादवों में जरासंध का भय समाप्त होते ही उनके बीच पुनः आंतरिक सत्तासंघर्ष शुरू हो जाता अतः कृष्ण चाहते रहे होंगे कि किसी धर्मप्राण सम्राट के हाथों भारत के एकीकरण से पहले यादवों के अंदर ये भय बना रहे।
कृष्ण अपनी गणना में कितने एक्यूरेट थे तह इससे पता चलता है कि जरासंध की मृत्यु होते ही यादवों में आंतरिक संघर्ष शुरू हो गया जो शतधन्वा द्वारा सत्यभामा के पिता सत्राजित की हत्या से शुरू हुआ और सत्यभामा इंद्रप्रस्थ में कृष्ण को मदद के लिए बुलाने आईं।
इस आंतरिक सत्ता संघर्ष की अंतिम परिणिति प्रभास में यदुकुल के विनाश के रूप में हुई।
आज भी भारत में वही स्थिति है बस जरासंध की जगह ‘मु स्लिमों’ को रख दीजिए।
गृहयुद्ध में हिंदुओं की विजय और मुस्लिम समस्या के समाप्त होते ही हिन्दुओं के बीच सत्ता के लिए जातियों के बीच संघर्ष द्वारा गृहयुद्ध का दूसरा चरण शुरू होगा।