नरेशन’ से ‘नैरेटिव’ बना है और वामपंथी समूह का इस देश के नैरेटिव पर दशकों से कब्जा रहा है। वह जो भी कहते हैं, पूरे विश्वास से कहते हैं। अलग अलग मंचों से कहते हैं और वह बात सच मान ली जाती है।
वह कहानी जो सबसे पहले हम सुनते हैं, वह हमारे अंदर बहुत गहरे बैठ जाती है। उस कहानी को कोई नए सिरे से समझाना चाहे तो उसे स्वीकार करने में हमें बड़ी मुश्किल होती है।
बिल्किस बानो की कहानी भी कुछ ऐसी है। इतनी बार सुनाई जा चुकी है कि अब किसी सवाल के लिए शायद हमारा मन तैयार ना हो लेकिन उस मामले में आया उम्र कैद का फैसला ‘अनसुलझे सवालों’ को अनदेखी करके ही आया था। फिर हाल में आए रिहाई के फैसले पर बात कभी और।
बहरहालं उन अनसुलझे सवालों में आप सबकी रूचि होगी तो बिल्किस बानो पर यहां बात होगी। यदि आपको लगता है कि इस संबंध में संवाद नहीं होना चाहिए। आपने अपनी राय बना ली है और अब उस राय को कोई हीला नहीं सकता।
इतनी मजबूत की चर्चा और संवाद के लिए भी कोई जगह नहीं बचती तो इस संबंध में फेसबुक पर इसे अन्तिम पोस्ट ही माने। इससे इतर आपको लगता है कि बिल्किस बानो के मामले में हुए कथित न्याय पर संवाद होना चाहिए तो जरूर थोड़ा साहस करके कुछ बातों की तरफ आप सब लोगों का ध्यान आकृष्ट कराने की चेष्टा करूंगा।