Home चलचित्र पूर्वाग्रह

पूर्वाग्रह

आपने हिंदी मसाला फिल्मों में एक सीन देखा होगा जिसमें निरूपा रॉय या राखी टाइप की माँ हीरो को बताती है कि वह उसका बेटा नहीं है तो हीरो की पहली प्रतिक्रिया क्या होती है?
“नहीं, ये झूठ है।”
आपने शायद जेम्स बॉन्ड सीरिज का एक दृश्य भी देखा हो जिसमें डेनियल क्रेग को 007 का रुतबा वापस पाने के लिए कड़े मानसिक टैस्ट से गुजरना पड़ रहा है जिसमें रैपिड फ़ायर प्रश्नों के उत्तर उसी गति से देना है ताकि उसके मानसिक स्थिति का पता लगाया जा सके।
प्रश्नों की झड़ी के बीच उससे किये गये प्रश्नों में एक प्रश्न था, “M?”
बॉन्ड का क्विक रिप्लाइ, “कमीनी।”
हम वास्तविक जीवन में कम या ज्यादा इसी मानसिक अवस्था में जीते हैं।
मैंने एक प्रश्न किया था जिसमें वस्तुतः दो प्रश्न छुपे थे।
चूँकि मेरी लिस्ट में अनेक विचार के लोग हैं पर अधिकांशतः मु स्लिमों से उनकी विध्वंसक वृत्ति से घृणा करते हैं और इसीलिये नालंदा व तक्षशिला के ‘विध्वंस’ के वाक्य में ‘मु स्लिम’ शब्द आते ही अधिकांश ने ‘मु स्लिमों’ को उत्तरदायी ठहराया।
कुछ के मन में बौद्धों के प्रति रोष था इसलिए घुमाफिराकर बौद्धों को ही जिम्मेदार ठहरा दिया।
एक दो ऐसे भी थे जिन्होंने ब्राह्मणों को इसका दोषी ठहराया।
और तो और कुछ ने भीमटों (नवबौद्धों) को इसका जिम्मेदार ठहरा दिया।
कुछ ने सही उत्तर भी दिये, चाहे पहले से पता हों या मालूम करके दिये, पर दिये।
बाकी स्मार्टनेस दिखाते हुए शांत रहे कि जाने पनाला कहाँ गिरेगा।
लगभग 90% उत्तर पूर्वाग्रह ग्रसित थे
इन उत्तरों में नालंदा के संदर्भ में अधिकांश ने विध्वंस के लिए मु स्लिम आतताइयों को जिम्मेदार ठहराया जो सही था लेकिन उसी पूर्वाग्रह में तक्षशिला को भी लपेट दिया।
न…न…न… ये मत कहिए कि आपको पता नहीं था इसलिए ऐसा किया क्योंकि अगर ऐसा होता तो आप कहते मुझे तक्षशिला का नहीं पता(कुछ ने लिखा भी) लेकिन आपके पूर्वाग्रह ने ऐसा करवाया।
ऐसे ही पूर्वाग्रह हमारे मन में जन्म से ही भर दिये जाते हैं और जब कोई लेख आपके पूर्वाग्रहजनित अहं को पुष्ट करता है तो आपकी प्रतिक्रिया होती है-‘वाह’, ‘निःशब्द’ ब्ला…ब्ला…ब्ला… भले ही वह सिरे से गप्प हो।
मसलन फेसबुक के एक गपोड़ी ने ‘तक्षक’ नामक फिक्शन लिखा और बंदे फूले नहीं समाये। किसी ने यह नहीं पूछा कि इस कथा का स्रोत क्या है।
और तो और कई लोग मेरे पास इसकी पुष्टि के लिए आये और जब मैंने इसे फिक्शन करार दिया तो उल्टे झगड़ने लगे।
लेकिन आर्यभट्ट की पोस्ट पर ऐसे ही सारे लोग तुरंत इतिहास मर्मज्ञ बन कर प्रमाण मांगने आ गए जबकि वह एक इतिहास प्रसिद्ध घटना है जिसके बाद युवा आर्यभट्ट को नालंदा का कुलपति बनाया गया।
जानते हैं क्यों?
वही, भीतर छिपा पूर्वाग्रह।
जिस महान ब्राह्मण की कथा कही गई उसकी ओर ध्यान नहीं है बस ये दिख रहा है कि ‘हमारी जाति की एक ठाकुर’ ने बेइज्जती कर दी।
एक ने भी नैट सर्च करके इस घटना के बारे में ढूंढने की जहमत नहीं उठाई। क्यों??
क्योंकि डर लगता है सत्य के अन्वेषण से।
और ये बात हरेक के बारे में है चाहे वह अहं धर्म का हो या जाति का या क्षेत्र का या व्यवसाय का।
हालांकि मैं जानता हूँ कि हम चिकने घड़े हैं लेकिन फिर भी अब Abhijeet भाई की सुबह की पोस्टानुसार तय किया है कि जो भी स्वयं बिना प्रमाण प्रस्तुत किये ‘प्रमाण या स्रोत’ की माँग करेगा उसे ‘मोक्ष’ प्रदान किया जाएगा क्योंकि किसी के अहं को सहलाने वाला नौकर नहीं हूँ मैं और न कोई मुझे पीएचडी देगा जो हर पोस्ट पर नीचे स्रोत लिखूँ।
और हाँ,
तक्षशिला का विध्वंस और निरीह बौद्धों की हत्याएं मिहिरगुल हूण ने की थी जो कट्टर शैव था।
जबकि नालंदा का विध्वंस मु स्लिम लुटेरे मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी ने किया था।
मेरे लिए मिहिरगुल और खिलजी एक जैसे हत्यारे हैं पर क्या आपके लिये हैं?

Related Articles

Leave a Comment