कुमारिल_भट्ट

एक ऐसे विद्वान जिन्होंने भारत में बौद्ध संप्रदाय के अंतिम गढ़ अर्थात बिहार-बंगाल में ही उसकी जड़ें हिला दीं।
कथा आप जानते ही हैं बस संक्षेप में जान लीजिए।
कुमारिल के सामने समस्या यह थी कि ज्ञान के स्रोतों व संस्थानों (एकेडमिक्स) पर बौद्धों का कब्जा था और बिना बौद्ध दर्शन को पढ़े, बिना उसकी कमजोरी जाने उसे परास्त कैसे किया जाये क्योंकि नालंदा और अन्य विख्यात शिक्षा संस्थानों में वे किसी गैर बौद्ध को प्रवेश करने ही न देते थे।
आपको आज जैसी स्थिति ही नजर आ रही है न?
निदान, ऐसे में कुमारिल ने बौद्ध साधक छात्र के रूप में बौद्ध संस्थान में दाखिला लिया और बौद्ध दर्शन का गहन अध्य्यन किया लेकिन एक दिन उनका भेद खुल गया जब आचार्य द्वारा वेद निंदा पर उनकी आँखों में विवशता व क्षोभ के कारण आँसू आ गए।
खैर! कुमारिल ने एक-एक कर बौद्ध विद्वानों को उन्हीं के तर्कों से शास्त्रार्थ में पराजित कर बौद्धों के अंतिम गढ़ को भी तेजोहीन कर दिया।
उधर दक्षिण से भी एक युवा संन्यासी वेदांत का उद्घोष करता उनकी ओर बढ़ रहा था जिसके सामने बौद्ध तो क्या अन्य वैदिक सम्प्रदाय भी टिक नहीं पा रहे थे।
मजे की बात यह है कि इनकी तर्क पद्धति के कारण उस युग के ईर्ष्यालुओं ने उन्हें ‘प्रच्छन्न बौद्ध’ कहा जबकि वे जलनखोर अपने जीवन में खुद कुछ नहीं कर पाये।
फेसबुक पर आदरणीय Pushker Awasthi Pramath सर हों या Abhijeet भाई या #विश्वमानव महोदय, ये वामपंथियों के विरुद्ध सफल इसलिये रहे हैं क्योंकि इन्होंने कांग्रेसियों, मु स्लिमों व वामियों के तंत्र का गहरा अध्ययन किया है।
-अँग्रेजी में पढ़ने सोचने वाले पुष्कर अवस्थी सर ने प्रौढ़ावस्था में आकर गहन प्रयास से हिन्दी पर असाधारण अधिकार पाया और अंतर्राष्ट्रीय संबंध जैसे आभिजात्य विषय पर अंग्रेजीदां वर्ग की सोच को जान समझकर अपने सशक्त लेखों से आम पाठकों के लिए मोदी सरकार की विदेश नीति के संदर्भ में उनके नैरेटिव को ध्वस्त किया और आज अपनी जड़ों की ओर लौट रहे पाकिस्तान के इ स्लाम विरोधी विद्रोही व भारत समर्थक बुद्धिजीवी उनसे मिलते हैं अपने आंदोलन के संदर्भ में।
अभिजीत भाई ने अरबी लिपि सीखी और कुरान व हदीस का गहन अध्ययन किया और आज दावे से उनके सम्मुख कोई मौलाना भी दो मिनिट खड़ा नहीं हो पायेगा।
विश्वमानव महोदय, हालांकि उनकी सोच अपने निजी अहं से आगे नहीं जाती लेकिन फिर भी वामपंथियों की नस नस से वाकिफ इस आदमी के सामने कोई भी वामपंथी आने से कतराता है। ये बात अलग है कि इस बंदे की निष्ठा केवल स्वयं के अहं के प्रति है इसलिए नकारात्मक उपयोगी भर है।
पुष्कर सर हों या अभिजीत भाई या मैं, अक्सर ये परेशानी फेस करते हैं कि हमारे ही लोगों को ‘हमारा लक्ष्य’ नहीं दिखता बल्कि हमारे ‘तरीकों’ पर फोकस ज्यादा करते हैं।
कोई ‘कृष्ण बड़ा निर्मोही है” पर मजाक उड़ा रहा है तो कोई अभिजीत को उनके अरबी-उर्दू ज्ञान के लिए मुस्लिम घोषित कर रहा है और मैं….. मुझे तो माँ बहन की गालियों द्वारा ब्राह्मणद्रोही,राजपूत कुलकलंक से लेकर प्रच्छन्न वामपंथी तक घोषित किया जा चुका है।
जबकि मेरा फंडा स्पष्ट है कि जिन घटनाओं व प्रवृत्तियों को आधार बनाकर वामपंथी व मु स्लिम सारे मु स्लिमों का बचाव करते हैं मैं स्वयं उनकी आलोचना कर उनके आधार को ही खत्म कर देता हूँ।
मसलन,
वे कहते हैं कि शशांक ने बोधिवृक्ष कटवाया था।
मेरा जवाब होता है- हाँ और वो घोर निंदा का पात्र है और अब आप भी अकबर की निंदा करो जिंसने चित्तौड़ में एकलिंगजी को तोड़कर उससे कुरान का मीम्बर बनवाया था।
अब मैंने उनके भागने के सारे दरवाजे बंद कर दिये।
अब वे कुछ बोल पायें न बोल पायें लेकिन हमारे लोग जरूर कूद पड़ेंगे– “शशांक ऐसा नहीं था, वो तो बौद्ध खराब थे, ये एक मिलावट है …आदि… आदि।”
अब आप बताइए, वामपंथियों को ताकत कौन देता है?
तो कृपया हमें अपना काम करने दीजिए आपसे अकादमिक बहस से न मुझे फायदा है न आपको खासतौर पर जब आपके पास तर्क प्रमाण नहीं बल्कि अपने धार्मिक, जातीय, क्षेत्रीय पूर्वाग्रह भर हैं।
आपको कोई तथ्य पसंद न आये तो चुप रहकर इग्नोर कीजिये जो आपका सबसे बड़ा योगदान होगा।
Note:- कुमारिल भट्ट को उदाहरण रूप में लिया गया है, तुलना के रूप में लेकर मूर्खता का परिचय न दें।

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