Home विषयइतिहास महाराणा प्रताप और पादशाह | प्रारब्ध

महाराणा प्रताप और पादशाह | प्रारब्ध

लेखक - देवेन्द्र सिकरवार

251 views
“अगर मेरे और दादाजी के बीच में और कोई पीढ़ी न होती तो कोई विदेशी तुर्क इस देश के लिए कानून न बना पाता।”~ महाराणा प्रताप
महापुरुषों के नित नित अवतरण के महान सौभाग्यों के साथ भारत का यह दुर्भाग्य भी रहा है कि यहाँ सदैव एक ऐसा धूर्त वर्ग रहा है जिसके कार्य भारत के भविष्य पर भारी पड़ते हैं।
इतिहास विषय इसका अपवाद नहीं और हो भी कैसे, यही तो भविष्य की पीढ़ियों का निर्माण करता है।
आधुनिक भारत में इसी वर्ग का प्रतिनिधित्व करते नेहरूवियन इतिहासकारों ने प्रथमतः तो भारत में ‘राष्ट्र’, की अवधारणा को नकारने का प्रयत्न किया और जब ऐसा नहीं कर पाए तो मु स्लिम आक्रांताओं को ही भारत का राजनैतिक एकीकरण करने का श्रेय देने की कोशिश की गई।
नेहरू बहादुर को तो अपने मुस्लिम खून का इतना गुमान था कि अकबर को भारतीय राष्ट्रवाद का पिता कहते थे।
और महाराणा प्रताप?
एक विद्रोही जमीदार जो भारत की राजनीति एकता में बाधक बन रहा था।
बहुत खूब!
उल्टा चोर कोतवाल को डांटे।
सच्चाई यह है कि महाराणा का लक्ष्य केवल मेवाड़ की स्वतंत्रता कभी नहीं था। उनका लक्ष्य अपने महान पितामह राणा संग्राम सिंह का दिल्ली पर हिंदुआ ध्वज था।
इसीलिये अपने पिता द्वारा एक नर्तकी के लिए मारवाड़ के मालदेव से झगड़ते देख वे तिलमिला उठे थे और उन्होंने स्पष्ट कहा कि मेवाड़ का धन व रक्त आपकी विलासिता के लिए नहीं है।
कहा जाता है कि वे बचपन में अक्सर चित्तौड़ में राणा कुंभा के विजयस्तम्भ पर जाकर वहाँ की धूल माथे पर लगाकर राणा सांगा की प्रतिज्ञा दुहराते थे।
महाराणा के बल, शौर्य व चरित्र के साथ साथ उनके उद्देश्य को ध्यान रखना जरूरी है कि मेवाड़ तो एक प्रतीक था , उनका असली संघर्ष था दिल्ली के लिए, दिल्ली पर हिंदू ध्वज लहराने के लिए।
सरदार पटेल जानते थे।
वे पहुंचे राणा भूपाल सिंह के पास जो उदयपुर को राजस्थान की राजधानी बनाने पर अड़े थे।
“राणा सा, महाराणा प्रताप का स्वप्न पूर्ण हुआ है आप दिल्ली चलकर सिंहासन संभालें।” गंभीर स्वर में सरदार ने कहा था।
राणा जी के सामने महाराणा की प्रतिज्ञा तैर गई और आंखों से आंसू बह निकले।
छत्रपति जानते थे, बंकिमचंद्र जानते थे, भगतसिंह जानते थे, सरदार जानते थे और जानते थे राणा।
नहीं जानती तो ये अभागी पीढ़ी कि महाराणा केवल मेवाड़ के लिए नहीं लड़े थे वे लड़े थे उस सनातन, चिरंतन हिंदू राष्ट्र के लिए जिसकी भौगोलिक सीमाएं सुदूर ऑक्सस नदी से लेकर कन्याकुमारी तक फैली हुई थीं।
उनके लक्ष्य को याद रखना ही महाराणा को याद रखना है।

Related Articles

Leave a Comment