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एक बार मैंने महसूस किया कि मेरे एक मित्र मुझसे

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एक बार मैंने महसूस किया कि मेरे एक मित्र मुझसे अपने प्रति उनके व्यवहार में रुखेपन की खुरदराहट महसूस करने के बाद ही मैं इस निश्चय पर पहुंचा कि अब वो पहले जैसे नहीं रहे। वजह की पड़ताल हेतु मैंने उस तीसरे मित्र का सहारा लिया जो हमारे और उनके बीच के ‘साझे मित्र’ थे।

साझे मित्र ने बताया कि “आप उनके घर मांगलिक कार्यक्रम में उपस्थित नहीं हुए जिस कारण उन्हें बहुत ठेस पहुंची। आपकी अनुपस्थिति ही उनके घोर हताशा का कारण है।”
“उपस्थित नहीं हुआ!!!! यार मुझे न तो निमंत्रण मिला और न ही मुझे ऐसी कोई सूचना भी आई… यहां तक की स्वप्न में भी कोई धुंधले संकेत नहीं मिले”
साझे मित्र ने कहा – “मुझे जो जानकारी थी वो आपको मुहैया करा दी…शेष आप उन्हीं से पूछ लीजिएगा”
बिना देर किए मित्र के घर पहुंचा। मेरे सामने पानी के साथ एक सप्ताह पूर्व में निर्मित लड्डू पेश किया गया। आशा नहीं पूर्ण विश्वास था कि वो लड्डू उसी कार्यक्रम का हिस्सा था जिसमें मैं पहुंचने से चूक गया था।
खैर! बिन लागलपेट के मैंने मित्र से पूछा-” यार! एक तो विवाह में बुलाए नहीं… दूसरा नाराज़ भी आप ही हैं… तीसरा यह कि दुनिया में आप यह बुनिया भी बांट रहें हैं कि मैं आपके नियंत्रण में शरीक न हुआ।
मित्र तिलमिला कर बोले- “गजब का इल्ज़ाम लगाते हैं आप!!! गणेश जी बाद जो टॉप ट्वेंटी निमंत्रण भेजा था मैंने, उसमें थे आप! और आप ही कह करें हैं कि निमंत्रण नहीं भेजा।”
“भाई मैं इल्ज़ाम नहीं लगा रहा लेकिन मुझे भी तो पता चले की निमंत्रण किसके हाथ में थमा आये आप।”
मित्र ने एक सेकेंड में मोबाइल का पैटर्न लॉक खोला वाट्सएप में उतरे…मेरा नाम सर्च किया और खोलकर दिखाये… “देखिए! भेजा है कि नहीं….और हां विवाह के बाइस दिन पहले ही निमंत्रण सेंड कर दिया था मैंने”
इधर मैं अपना मोबाइल खोलकर स्क्रीन ऊपर सरकाने लगा कुछ देर बाद देखा तो पाया कि वास्तव में वहां कार्ड दुबका पड़ा है और मुझ जैसे बेशर्म को इतनी तमीज नहीं कि उस स्नेह निमंत्रण को खोलकर देख सकूं।
बात को थोड़ा तरल करने के लिए अपना हाथ लड्डू की तरफ़ बढ़ाया…पूरा खाने की हिम्मत न हो रही थी तथा सिर्फ पानी पीने में संकोच! लड्डू तोड़ने का प्रयास किया लेकिन लड्डू के बुनियों के बीच एक गहरी पैठ बन चुकी थी। उनके बीच की एकता को सहज अहसास किया मैंने। मित्र ने कहा “पूरा खाइए! घर का बना है।” अब पता नहीं उन्हें कौन समझा रखा था कि घर के बने कितने भी बासी खा लो लेकिन हैजा की बीमारी नहीं हो सकती।
पानी पीने के बाद मैंने मित्र से कहा- “यार मुझे जब कभी कुत्ते को रोटी देना होता है। तो रोटी लेकर घर के चौखट पर खड़ा होता हूं..इधर उधर देखता हूं यदि कुत्ता नहीं दिखाई देता तो जोर से आवाज लगा देता हूं आ तूss…आ तूsss…बस इतने देर में मुहल्ले के कुत्ते दुम हिलाते पहुंच आते हैं मेरे पास”
मित्र ने हंसते हुए कहा “मैं भी ऐसा ही करता हूं”
“यार! जब वाट्सएप पर कार्ड भेज रहे थे तो उसी वक्त आवाज लगानी थी आपने। एक फोन कर देते तो मैं भी वाट्सएप तक पहुंच आता। खैर! अब गलती हो गयी तो हो गयी….आगे से आप निमंत्रण देते वक्त, आवाज़ भी लगा देंगे तो हमारे लिए भी सहूलियत हो जायेगी। शेष मांगलिक कार्यक्रम में उपस्थित न होने के लिए क्षमा प्रार्थी हूं।

 

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