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जाति के नाम पर भेदभाव

Ashish Kumar Anshu

by Ashish Kumar Anshu
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यह हम जैसों के लिए खुशी की बात है कि सवर्ण समाज के एक वर्ग में अब यह बात हो रही है कि हमारे बीच के एक बड़े वर्ग को लंबे समय तक जाति के नाम पर संसाधनों पर बराबरी के अधिकार से वंचित रखा गया। जाति के नाम पर उनके साथ भेदभाव किया गया।
आज जब हम गर्व से कह रहे हैं कि हिन्दू जाग रहा है। हिन्दू जाग गया है। हिन्दू समाज के एक बड़े वर्ग के साथ हुए भेदभाव और उपेक्षा के प्रायश्चित के बिना क्या सच में यह प्रक्रिया पूरी हो पाएगी? क्या हमारा समाज अपने पूर्वजों की गलती की क्षमा मांगने के लिए तैयार है, वह तैयार है यह विश्वास दिलाने के लिए कि आने वाली पीढ़ियों को हम इस भेदभाव और छूआछूत के विचार से दूर रखेंगे।
हमारे करोड़ों भाई कन्वर्ट होकर दूसरे मतों में शामिल हो गए हैं। उनसे जो वादे किए गए। वे वादे भी वहां पूरे होते हुए दिखाई नहीं दे रहे। वे हिन्दू समाज को छोड़कर जिस भी मत में गए, वहां भी उनके साथ छल ही हुआ है।
यदि भारतीय समाज में ​सहिष्णुता और बंधुत्व का माहौल हिन्दू समाज की तरफ से बनाए जाने की पहल होती है, यह पहल पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल बनेगी। हिन्दुस्थान में मंदिर-चर्च या किसी और ऐसे प्रार्थना स्थलों का कोई झगड़ा नहीं है।
जब देश की 90 फीसदी से अधिक आबादी एक ही मत से निकली हुई है। देश का सवर्ण मान ले कि हमारे पूर्वजों से गलती हुई है। हमारे पूर्वजों ने भेद भाव किए हैं। अब देश में संविधान है। सभी बराबर हैं। अब कोई बड़ा या कोई नीच नहीं है। जो रूठ कर चले गए, उनसे वापसी की अपील भी की जानी चाहिए।
वीर सावरकर का हिन्दू राष्ट्र ऐसा ही था। जहां 1930 के दशक में उन्होंने समाज के वंचित वर्ग के लिए मंदिर प्रवेश का आंदोलन किया। भागोजी कीर की मदद से रत्नागिरी में मंदिर बनवाया। दुनियाभर का कन्वर्जन गिरोह वीर सावरकर को इसीलिए पसंद नहीं करता क्योंकि जाति के नाम पर जो दीवार हिन्दू समाज में खड़ी की गई थी। उसे सावरकर तोड़ रहे थे।
कभी सोचा आपने कि जिस देश में हिन्दू मुस्लिम भाईचारे की बात दशकों से हो रही है। वहां राजपूत-यादव, भूमिहार-कोईरी, गोंड और ब्राम्हण, जैन और सिख एकता की बात किसी ने क्यों नहीं की? जाति के नाम पर हमेशा एक गिरोह समाज को बांटने की बात करता रहा। जिन्होंने कभी पेरियार, कभी फूले, कभी डॉ. अम्बेडकर, कभी कांचा इलैया शेफर्ड तो कभी प्रो. रतन लाल जैसों का सिर्फ इस्तेमाल किया, हिन्दू समाज को बांटने के लिए। इनमें से कभी किसी ने आगे बढ़कर नारा नहीं दिया-
कायस्थ-महार, भाई—भाई। इससे उनकी राजनीति प्रभावित हो जाती।
बहरहाल हिन्दू समाज की एकजुटता के लिए देश के सवर्णों को पहल करनी चाहिए। आगे आना चाहिए और अपने पूर्वजों की गलतियों के लिए माफी मांगनी चाहिए।

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