विभीषण को समाजिक मर्यादाओं की कसौटी पर कसेंगे तो पाएंगे उनमें कमियाँ थीं, एक बड़े युद्ध में वो अपने सगे भाई के मृत्यु का कारण बने बावजूद इसके सनातन धर्म को मानने वाले विभीषण की आलोचना नहीं करते क्यूँकि वो श्री राम के पक्ष में खड़े थे।
सुग्रीव में लगभग सभी वो अवगुण थे जो राजा बालि में थे बावजूद इसके सनातन धर्म को मानने वाले सुग्रीव की आलोचना नहीं करते क्यूँकि वो श्री राम के पक्ष में खड़े थे।
जब श्री राम के अनुनय विनय के बावजूद ‘समुद्र’ उनकी सेना को लंका पहुँचने की जगह नहीं दे रहा था तब श्री राम ने क्रोधित हो कर अपने धनुष पर बाण चढ़ा लिया। ये देख कर समुद्र गिड़गिड़ाने लगा और फिर तमाम चौपाइयों के बीच में उस चौपाई को भी बोला, जिस पर अभी विवाद है।
समुद्र ने श्री राम के लिए सरल स्थितियाँ नहीं रखी, उन्हें क्रोधित किया, उसके बाद दया की भीख माँग कर बचा। सुन्दरकाण्ड में रोज लाखों भारतीय समुद्र को गिड़गिड़ाते देख कर आनंद लेते हैं क्यूँकि वो श्री राम के पक्ष का नहीं था।
एक कहानी में हर पात्र विवेकशील बातें करें, ऐसी अपेक्षा करना हमारी बुद्धि पर प्रश्न लगा देता है और अगर हम ऐसी अपेक्षा नायक के विरोधी किरदार से करें तब तो दुनिया को लेकर हमारी समझ ही कटघरे में आ जाती है।
सनातन धर्म को मानने वालों को केवल श्री राम के वचनों से ही खुद को सम्बद्ध करना चाहिए। उनके बयान, उनके कार्य, उनकी संवेदनशीलता हमारे लिए अनुकरणीय हैं। बाकी श्री राम के लिए कठिन स्थितियों को पैदा करने वाले समुद्र की बातों को जो अनुकरणीय और उदाहरण माने, वो किस पक्ष का होगा, ये अब आपको स्पष्ट ही हो जाना चाहिए।