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Major Movie Review

Om Lavaniya

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मेजर! वाक़ई सोल्जर का अर्थ कोई समझा नहीं सकता है, इसे जीकर ही महसूस और समझा व बतलाया जा सकता है।

बहुतेरे निर्माता-निर्देशक के. उन्नीकृष्णन के पास आए और उन्होंने उनके बेटे मेजर संदीप उन्नीकृष्णन की बॉयोपिक बनाने की इच्छा व्यक्त की। लेकिन उन्नीकृष्णन ने मना कर दिया। उनका दो टूक मैसेज था, जिस कलाकार में मेरे बेटे की छवि दिखलाई देगी। उसे ही बॉयोपिक की अनुमति होगी।
यक़ीनन! संदीप उन्नीकृष्णन ने अदिवि शेष को चुना, बल्कि इंतज़ार कर रहे थे। तभी तो संयोग कहे या कुछ और मेजर संदीप से मिलने के लिए अदिवि शेष ने स्वयं स्क्रिप्ट, स्क्रीन प्ले लिखा और 70 एमएम पर संदीप से मिले। संदीप के पिता ने शेष को बॉयोपिक बनाने की सहमति दे दी।
किरदार अपने कलाकारों को चुन लेते है, ऐसे केसेज में दर्शक कहानी व किरदारों से पहली फ्रेम में कनेक्ट हो जाते है। क्योंकि यहाँ निर्देशक-कास्टिंग डायरेक्टर द्वारा उन्हें नहीं चुना जा रहा है। किरदार अपनी रेंज के अनुरूप कलाकार को बोर्ड पर लेते है। जहाँ निर्देशक-निर्माता या कास्टिंग डायरेक्टर जबरन किरदारों पर मिसमैच कलाकार थोप देते है उसके रिजल्ट में जोकर निकलता है।
मेजर संदीप के शौर्य गाथाओं में 26/11 महत्वपूर्ण घटनाक्रम था। इसमें आतंकियों से लोहा लेते हुए, होस्टेज को बचाने में जुटे रहे और आखिर में वीरगति को प्राप्त हुए। आतंकी कभी सीधी लड़ाई में नहीं आते है सिर्फ एक भारतीय सोल्जर 10 आतंकियों के अंदर खौफ़ पैदा कर देता है।
अदिवि शेष ने संदीप की शौर्य गाथा में सिनेमाई फॉर्मेट का उपयोग किया है और बेहतरीन स्क्रीन प्ले दिया है। मैंने एक प्ले में पूरी फिल्म निपटा दी।
डायलॉग भी अच्छे है ‘सब माँ ऐसे सोचेगी, तो देश के लिए कौन जाएगा’
‘ये मेरे ऑफिसर्स है इनसे ज्यादा मुझे इनकी स्ट्रेंथ मालूम है, इसलिए मिशन में मैं भी आऊंगा’
‘सीनियर्स-पीओके में क्यों गए।
संदीप- पीओके अपना ही तो है’
अदिवि शेष मतलब संदीप उन्नीकृष्णन, इनसे बेहतर मेजर को कोई दूसरा अभिनेता सिल्वर पर नहीं उतार सकता था। सबसे अव्वल किरदार का लुक होता है। अदिवि शेष में संदीप को उनके माता-पिता देख चुके थे। तो संदीप को बाहर आना ही था। शेष के मेजर के लिए हाव-भाव, देशभक्ति और जुनून सॉलिड…कुछ भी हो, कैसे भी सेना में जाना है। बॉडी ट्रांसफॉर्मेशन भी उम्दा रहा, ड्यूटी के बीच कोई नहीं… सब साइड में रख दिए और माँ भारती की सेवा में जुटे रहे। स्क्रीन पर शेष को सोल्जर में देखकर मन को अलग ही सुकून मिला। संदीप को देखा, उनकी कहानी सुनी।
प्रकाश राज! सिनेमा से इतर इनके विचारों से सहमत नहीं हूं, लेकिन….लेकिन! अभिनेता के तौर पर उम्दा है। बाप को जिया है इकलौता बेटा फ़ौज में जा रहा है। जॉइनिंग लैटर के वक्त पिता का प्रेम और 26/11 अटैक में एनएसजी का ताज में जाना, तब अपने आप को तसल्ली देना। कि ट्रेनिंग ऑफिसर को फील्ड पर नहीं भेजते है। फिर पत्नी और बहू को दोहराना…अहा…चुममेश्वरी अभिनय। शानदार और दमदार प्रकाश।
रेवती! आखिरी सीक्वेंस में आंसू माँ अपने लाल के बारे में सुनकर ख़ुश भी और खोने का गम भी…
साईं मांजरेकर! बला की खूबसूरत लगी है, सलमान से ज्यादा अच्छी अदिवि के साथ लगी है।
शोभिता धुलिपला! छोटे से किरदार में प्रभावित कर गई। आतंकियों के डर से फ़ोन पर नंबर डायलिंग में एक्टिंग स्किल देखिए।
बाक़ी सब ठीक है।
श्रीचरण पकला ने अच्छे से संगीत दिया है और बीजीएम भी कहानी के अनुरूप है। साथिया अच्छे बोल के साथ बेहतरीन फ़िल्माया गया है।
वामसी पच्चीपुलुसु की सिनेमेटोग्राफी खूबसूरत है। कश्मीर का सिनेरियो जबरदस्त है और ताज में एक्शन सीक्वेंस कमाल है। क्लाइमैक्स जोरदार है हालांकि सिनेमाई लिबर्टी ली गई है।
एडीटिंग टेबल पर दो सदस्यीय टीम विनय कुमार सिरिगीनेडी, कोडती पवन कल्याण बैठी थी। कंटेंट को धारदार बनाया है। लेकिन एक मिस्टेक रही और बड़ी थी। हमले के साथ ही न्यूज़ में चला दिया कि कसाब पकड़ा गया। जबकि सारे आतंकी होटल में मौजूद थे।
मेजर फ़िल्म से भारतीय मीडिया का कमीनापन और टीआरपी की भूख ज़ाहिर हुई। इन लोगों ने कारगिल के वक्त भी ऐसे ही लाइव रिपोर्टिंग की थी। ताकि आतंकी आकाओं को मदद मिल सके। 26/11 में भी और अब भी ऐसा ही व्यवहार है। कोई बदलाव नहीं है।
इसमें मुरली शर्मा का डायलॉग था, अब कोई ऑपेरशन नहीं होगा। ऊपर से ऑर्डर्स है। होटल होस्टेज है और लोगों को निर्माता से मारा जा रहा है और ऑपेरशन रोक दिया जाता है। ऐसी सिचुएशन में कौन ऑर्डर्स देता है। इससे साफ़ था कि आतंकियों को बचाना था। कसाब कामयाब भी हुआ था, लेकिन वीर तुकाराम ओम्बले साहब ने नाकाम कर दिया। जान की कतई परवाह न की।
शेरशाह के बाद अच्छी बॉयोपिक है, देखने में देर हो गई।

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