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केशव, बड़े भैया की यह दशा देखी नहीं जाती। गंभीर तो वह थे लेकिन अब तो एकदम कातर हो उठे हैं। तनिक सी वार्ता में उनकी आँखों में अश्रु झिलमिलाने लगते हैं।”
“हाँ पार्थ, इस युद्व ने उनसे उनका सर्वस्व छीन लिया है।” लंबी साँस लेते हुए कृष्ण ने कहा।
“समझ सकता हूँ केशव, लाखों मनुष्यों की मृत्यु का उनपर कैसा आघात हुआ होगा।” अर्जुन ने उदास स्वर में कहा।”भीम भैया भी अब उदास से ही रहते हैं।”
“नहीं पार्थ! मध्यम की उदासी उनकी आत्मग्लानि के कारण है जबकि ज्येष्ठ को जो घाव लगा है वह बहुत गहरा है।”
“ऐसा क्या हुआ है केशव जिसकी पीड़ा का भान हममें से किसी को नहीं है।”
“विश्वास!उनका परिवार में अंतिम विश्वास टूट गया है।”
“ये क्या कह रहे हैं, केशव!” अर्जुन स्तब्ध थे।
“हाँ पार्थ! समस्त विश्व में उन जैसा धर्मज्ञ विरले ही हुआ होगा लेकिन अंततः वह हैं तो मनुष्य ही। उनका मन भी उन्हीं भावनाओं से संचालित रहा जिससे एक साधारण मनुष्य का होता है।”
“और वह क्या है?”
“परिवार पार्थ, परिवार।” उनके धर्म का आधार परिवार का बल ही रहा जिसके बल पर उन्होंने धर्म की स्थापना का स्वप्न देखा था।”
“फिर?” अर्जुन अचंभे में थे।
“युधिष्ठिर की कातरता उनके टूट जाने का परिणाम है। वह क्रमशः टूटते आ रहे हैं… टुकड़ों में….बाल्यकाल से ही।” कृष्ण की क्षितिज में झांक रही आँखों में भी आँसू झिलमिला उठे मानो वह युधिष्ठिर की पीड़ा को जी रहे थे।
अर्जुन अवाक थे।
“वे पहली बार तब टूटे जब तुम्हारे पिता की मृत्यु हुई। तब वे केवल दस वर्ष के ही तो थे। तुम और अन्य भाई इतने बड़े नहीं थे कि पिता का महत्व समझते लेकिन ज्येष्ठ ने वह पीड़ा झेली क्योंकि वह महाराज की पहली संतान थे और उनके बहुत प्रिय भी।”
“आपने सच कहा केशव! उस घटना के बाद हमने उन्हें हँसते हुए देखा हो, हमें स्मरण नहीं।” अर्जुन विह्वल थे।
“केवल यही नहीं पार्थ, उन्होंने चुपचाप तुम सबके अभिभावक का दायित्व संभाला ही नहीं, उसे पूर्णता से निभाया भी।”
“फिर और क्या हुआ था माधव।” अर्जुन की आँखों में भी पानी आ गया।
“दूसरी बार वे तब टूटे जब धृतराष्ट्र व गांधारी ने उन्हें ह्रदय से अपनाने से इनकार कर दिया।”
“पर यह तो स्वभाविक ही था क्योंकि सत्ता पर अधिकार और अपने पुत्र के लिए उसे सुरक्षित रखना पितृसत्ता की साधारण मनोस्थिति है।” अर्जुन ने हल्का प्रतिवाद किया।
“ज्येष्ठ इस तरह नहीं सोचते पार्थ। उनका सात्विक मन इसे स्वीकार नहीं कर पाया कि एक भाई अपने भाई के पुत्रों के प्रति भेद कैसे रख सकता है।” कृष्ण की वाणी में युधिष्ठिर के लिए अपार सम्मान था।
“इसके बाद क्या हुआ जिसने ज्येष्ठ को घायल किया?
“अगली बार उनका मोहभंग उससे हुआ जिसे वह धर्म का अवतार मानते थे। हां, तीसरी बार वे पितामह की ओर से टूटे थे जब पितामह ने सबकुछ जानते हुए भी कि दुर्योधन ने बीच सड़क पर उनके सारथी की पीट-पीट कर हत्या कर दी और वे कुछ नहीं बोले।” कृष्ण के स्वर में आवेश था।
“लेकिन उन्होंने तो कभी एक शब्द नहीं कहा। किसी से भी नहीं…हमसे भी नहीं।” अर्जुन ने प्रश्न किया।
“तुम अभी तक यह नहीं समझ पाए कि ज्येष्ठ कभी प्रतिक्रिया नहीं देते पार्थ। वे बस मौन हो जाते हैं।” कृष्ण कुछ क्षण रुके। “वे केवल उस व्यक्ति के प्रति अतिरिक्त औपचारिक हो जाते हैं।”
“इसके बाद क्या हुआ केशव?”क्षणिक मौन के बाद स्तब्ध अर्जुन ने पूछा।

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