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आर्य आक्रमण सिद्धांत के बुरी तरह फ्लॉप होने के बाद वर्तमान में एक बार फिर पश्चिमी नस्लवादी षड्यंत्र चल रहा था जो मध्येशियाई व यूरेशियाई क्षेत्रों में मिले विभिन्न पुरावशेषों के आधार पर #संशोधित_कुर्गान_सिद्धांत के माध्यम से विश्व की सबसे उन्नत सभ्यता ‘देव-आर्य सभ्यता’ का स्थान यूक्रेन-रूस क्षेत्र में सिद्ध करने की कोशिश कर रहा था।
लेकिन कोई भी कड़ी जुड़ नहीं पा रही थी।
वह जुड़नी भी नहीं थी क्योंकि पुरातात्विक कड़ियों को जोड़ने के लिए जिस आधार की आवश्यकता थी उसकी उपेक्षा की गई।
मैंने अपनी पुस्तक ‘अनसंग हीरोज:#इंदु_से_सिंधु_तक के जरिये सभ्यता के फैलाव का एक खाका प्रस्तुत किया जिसमें सभ्यता का मूल स्थान ‘सुमेरु’ अर्थात पामीर था।
जब तक पामीर में गहन उत्खनन न होंगे यह गुत्थी कभी नहीं सुलझेगी क्योंकि इस गुत्थी को सुलझाते के संकेत देने वाले एकमात्र ग्रंथ हैं – ‘ऋग्वेद’ व ‘पुराण’
-द्यौस व पृथिवी को पूजने वाले प्राचीन आर्यों का यवनों (यूनानी) के रूप में अलगाव,
-पूषा का चरवाहों के देवता में वर्णन व उनको भेड़ की ऊन का वस्त्र पहने दिखाना,
-बोटाई संस्कृति के क्षेत्र व संस्कृति से गंधर्वों की एकरूपता,
-तांबे व लोहे के खोजकर्ताओं के रूप में असुरों का वर्णन
ऐसे सैकड़ों संदर्भों को खोजकर मैंने इस नवीन यूरोपीय षड्यंत्र के विरुद्ध एक ठोस प्रमाणों पर आधारित प्रयास किया जो कुछ कुछ हिंदुत्व द्रोहियों के झूठे दुष्प्रचार के कारण वह उद्देश्य प्राप्त न कर सका जिसके लिए मैंने इस पुस्तक को रचा था और वह था
‘सभ्यता की आदि भूमि भारत जिसकी सीमाएं पामीर से हिंदमहासागर तक अर्थात ‘इंदु से सिंधु’ तक फैली थीं।

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