नीतीश कुमार सरकार की यह सबसे बड़ी उपलब्धी है कि उसने एक एक बिहारी को कानून-व्यवस्था के मामले में आत्मनिर्भर बनाया है। बिहार में कानून व्यवस्था के मामले में आत्मनिर्भरता को जरा समझिए।
मान लीजिए आपकी मोटर सायकिल बीच सड़क पर छीन ली गई। अब आप मामला दर्ज कराने थाने गए हैं। वह पुलिस आपसे कह सकती है- आपका लूट का नहीं, डिस्प्यूट का मामला है क्योंकि जिस (मोटर सायकिल) का आप अपना होने का दावा कर रहे हैं। वह तो अब दूसरे के कब्जे में हैं।
आप कोर्ट में जाकर साबित करके अपना समान जब तक उससे वापस नहीं ले लेते, तब तक तो सारा मामला डिस्प्यूट का ही रहेगा ना। वैसे भी बिहार के थाना में एफआईआर तो होता नहीं है।
ऐसे में आदमी में दम होगा, कानून हाथ में ले लेगा। नहीं तो समझेगा कि जो लूट गया। उस पर कभी अपना अधिकार ही नहीं था। अच्छा हुआ कि लूटने वाले ने प्राण नहीं लिए। यदि जान लेकर सामान भी ले जाता तो परिवार के लिए और भी महंगा पड़ता।
सासाराम के दंगा पीड़ित भी आत्मनिर्भर निकले। उन्होंने पुलिस की सुरक्षा। एफआईआर। कार्रवाई जैसे बिहार में गैर जरूरी हो चुके जुमलों के चक्कर में समय बिल्कुल बर्बाद नहीं किया। जैसे ही उन पर समुदाय विशेष की तरफ से हमला हुआ। वे समझ गए कि अब पलायन का समय आ गया है।
बिहार पुलिस मनीष कश्यप मामले में व्यस्त है। फिलहाल उन तक मदद पहुंचने में समय लग जाएगा।