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ढाल तथा तलवार और द केरल स्टोरी

देवेन्द्र सिकरवार

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प्राचीन भारतीय युद्ध पद्धति में एक बहुत बड़ी खामी थी और वह थी ढाल व कवच को प्रॉपर महत्व न देना।
जहाँ स्पार्टन व रोमनों ने विशाल धात्विक ढालों का प्रयोग कर असाधारण रणनीतिक घातकता प्राप्त की वहीं हिंदू सैनिकों ने पता नहीं क्यों महाभारत के बाद ‘लौहवर्म’ व ‘लौह ढालों’ के स्थान पर चमड़े के कवच व चमड़े की ढालों का प्रयोग किया और ऊपर से हिंदू ढालें काफी छोटी भी होती थीं।
ऐसी ढालें मराठों जैसी गुरिल्ला युद्ध पद्धति के लिए तो ठीक थीं लेकिन खुले मैदानी युद्धों में आत्मघाती थीं क्योंकि यह बाणवर्षा से निष्कवच शरीर को प्रॉपर ढंक नहीं पाती थीं।
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वैचारिक युद्ध में भी यही स्थिति है।
आपकी श्रद्धा और विश्वास तलवार की तरह हमला करने के लिए तो उपयुक्त है लेकिन आपके पास प्रॉपर प्रमाणों व तर्कों का कवच और अध्ययन की ढाल भी होनी चाहिए।
केवल अपने धर्म व इतिहास का ही अध्ययन नहीं बल्कि विपक्षी के धर्म की कमजोरियों की पूरी जानकारी होनी चाहिए।
कुछ आलसी लोग कहते हैं कि तर्कों व मानवीकरण से श्रद्धा कम हो जाएगी और विपक्षी के धर्म के अध्ययन से उनके प्रति आकर्षण उत्पन्न हो सकता है।
मैं अन्य कोई उदाहरण न देते हुए बस इतना पूछना चाहता हूँ कि Abhijeet Singh से ज्यादा इस्लाम के विषय में अध्ययन कई मौलानाओं को भी न होगा तो क्या उनकी हिंदुत्व के प्रति श्रद्धा कहीं से कमजोर दिखती है?
मैंने राम, कृष्ण, शिव, विष्णु, दुर्गा को उनके भौतिक ऐतिहासिक संदर्भों में वर्णित किया लेकिन हिंदुत्व के विरोधियों का मुझसे ज्यादा तीखा व प्रामाणिक विरोध कम ही लोगों ने किया होगा और कोई भी इन पूज्य चरित्रों के प्रति मेरी श्रद्धा को सुई की नोंक के सहस्त्रांश बराबर भी विचलित नहीं कर पाया।
और सच कहूँ तो फेसबुक पर मौजूद प्रामाणिक लेखकों में से नब्बे प्रतिशत लोग स्व.नरेन्द्र कोहली जी की ‘रामकथा’ और ‘महासमर’ से प्रेरित व प्रभावित हैं जो पूरी तरह मानवीकृत व ऐतिहासिक प्रमाणों पर आधारित है।
उदाहरण के लिए उन्होंने ‘रामसेतु’ के निर्माण की जिस इंजीनियरिंग तकनीक का वर्णन किया है वह इतनी वैज्ञानिक व तार्किक है कि मैंने उस सिद्धान्त का उपयोग अपनी पुस्तक ‘अनंसंग हीरोज’: #इंदु_से_सिंधु_तक के अध्याय ‘प्रथम सागर अभियंता’ में किया है।
तो बंधुओं श्रद्धा की तलवार हाथ में रखिये लेकिन अपने शरीर को ‘तर्कों’ की ढाल व ‘प्रमाणों’ के कवच से सुरक्षित कीजिये।
भगतसिंह ने भी तो कहा था न कि क्रांति की तलवार पर धार अध्ययन की सान पर आती है।

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