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राम! मेरे राम, इसके राम, उसके राम, सबके राम

by Swami Vyalok
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राम! मेरे राम, इसके राम, उसके राम, सबके राम

आस्तिकों के राम, नास्तिकों के राम।
वैष्णवों के राम, शैवों के राम, तुलसी के राम और कबीर के भी राम!
राम! जो इस देश के कण-कण में हैं, जो भारत की पहचान हैं, जो भारत ही नहीं, विश्व का वरदान हैं। जिसने मर्यादा का कभी अतिक्रमण नहीं किया, इसलिए ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ है। जिसने मानवता की उच्चम सोच को अपने शासन में परिलक्षित किया, इसलिए ‘रामराज्य’ हमारा सर्वोच्च आदर्श है।
राम, जो अंत समय में रावण के भी हो जाते हैं, बालि के भी हो जाते हैं और जब सही समय आता है, तो सब कुछ छोड़कर सरयू में जल-समाधि भी ले लेते हैं। राम, जो वन-वन घूमकर पत्नी के लिए विलाप भी करते हैं और जो मर्यादा की स्थापना के लिए उन्हीं पत्नी को त्याग कर जीवन भर का कलंक भी अपने माथे डाल लेते हैं।
राम! जो नायकों के भी हैं, खलनायकों के भी। जो गांधी के भी हैं, पेरियार के भी हैं। जो तिलक के भी हैं, अंबेडकर के भी। जो पूजनेवालों के भी हैं और उन पर हलालहल उंड़ेलनेवालों के भी। जो भक्तों को भी तारते हैं और शापभ्रष्ट, कुमार्गी पतितों को भी।
राम। मर्यादा पुरुषोत्तम! वह नाम जो मानवता के संपूर्ण कल्याण के लिए खुद ही मुहावरा बन गया- ‘रामराज्य’। राम, मतलब जो रोम-रोम में रमण करे, जो सार्वभौमिक हो, सार्वदेशीय हो, सार्वजनीन हो, ब्रह्मांडीय हो। राम जो स्वयंप्रकाश हो- ‘रा’ का अर्थ आभा, कांति या प्रकाश, ‘म’ का अर्थ स्वयं। ‘अप्प दीपो भव’- तुमसे ही निकला था न, राम।
राम, जो आदर्श हैं मूर्तिमान त्याग के। राम, जो चरम हैं अनुशासन और आज्ञापालन के। राम, जो सर्वोच्च हैं कौटुंबिक आदर्शों और अनुपालन के। राम, जो निकष हैं- प्रेम के। राम, जो एकपत्नीव्रती हैं। राम, जो शोषितों के उत्थापक हैं, दलितों के त्राता हैं, पीड़ितों के सखा हैं, आर्त जनों का अंतिम सहारा हैं।
राम! जो गांधी के तो हैं हीं, लोहिया के भी हैं। जो मूर्तिपूजकों के तो हैं ही, मूर्तिभंजकों को भी नहीं छोड़ते। एक मुस्कान के साथ उनका भी उद्धार कर देते हैं। जिनको इमाम-ए-हिंद लिखकर छोटा करने की साज़िश के बावजूद वह राम सार्वजनीन हैं, सर्व-व्यापक हैं, सर्वदेशीय और ब्रह्मांडीय हैं। जो पिंड में भी हैं और ब्रह्म में भी। जो आदि भी हैं और अनादि भी। जो सुर भी हैं, असुर भी। जो लय भी हैं और ताल भी।
.राम, जो पिता के एक वाक्य पर 14 वर्षों का वनवास लेते हैं, अपनी पत्नी के विरह में आकुल होकर वन की पेड़-पत्तियों से, लताओं से, जानवरों से प्रिया का नाम पूछते हैं, विमाता का भी इतना सम्मान, सौतेले भाइयों का इतना दुलार, गिरिजनों का साथ, ऋषियों का सान्निध्य पाकर समाज को समरस बनाते हैं, रामराज्य की स्थापना करते हैं।
राम! वह जो फूलों से कोमल और वज्र से कठोर हैं। राम जो सनातन धर्म की धुरी हैं। जो सनातन धर्म की मर्यादा की वह रेखा हैं, जिसका अतिक्रमण सीता तक को मुश्किल में डाल देता है। राम, वह जो एक क्षण में सिंहासन को सहजता से छोड़ भी देते हैं और उसी सहजता से वन से लौट कर अपना भी लेते हैं। राम, जो अपने चरित्र से मूर्तिमान आदर्श हो जाते हैं, जो यूनिवर्सिल हीरो हैं, जो राह हैं, जो प्रकाश हैं, जो ध्येय हैं, जो पथ भी हैं, पाथेय भी और पथिक भी।
राम! जिसका चरित्र ज्ञेय है, जो कृष्ण की तरह अप्रत्याशित-अज्ञेय नहीं है, जो धर्म की स्थापना के लिए धर्म के ही तरीके चुनता है, वह नियमों को अपने हिसाब से मोड़ता नहीं है। जो हमें अपने बीच का एक मनुष्य लगता है, जिसे हम पा सकते हैं, जो हमारा बड़ा भाई हो सकता है, जिसे पाने की हम कोशिश कर सकते हैं, जिसके व्यक्तित्व की ऊंचाई हमें डराती नहीं, आकर्षित करती है
…राम! जो शबरी के मीठे बेर खाते हैं, निषादराज से दोस्ती गांठते हैं, सुग्रीव और जामवंत की मदद से लंका जीतते हैं, जो समुद्र से तीन दिनों तक रास्ता देने का अनुनय करते हैं, नहीं मिलने पर क्रोध में उसे सुखाने को ही तैयार हो जाते हैं, जो अहल्या के तारक हैं, शोषितों के समुद्धारक हैं, वंचितों के नायक हैं।
राम! जिनको जुगाने और बचाने के लिए, अरबी बर्बरों से बचने और धर्म की संरक्षा-सुरक्षा के लिए लोगों ने अपने पूरे शरीर पर ही तुम्हारा नाम गोद लिया। जो वनवासी एक-दूसरे को थप्पड़ तक नहीं मार सकते क्योंकि उनके गाल पर तुम्हारा नाम लिखा है। राम, जो पीड़ितों का संबल हैं, आर्तों के उद्धारक हैं और अनाथों के नाथ हैं।
जय सियाराम।
सियाराम मय सब जग जानी, करहुं प्रणाम जोरि जुग पानी।।

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