Home लेखकMann Jee इब्न बतूता बग़ल में जूता

इब्न बतूता बग़ल में जूता

Mann Ji

by Mann Jee
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इब्न बतूता ने अपनी किताब रिहाला में दिल्ली आगमन पर लिखा है- ये शहर चार मुख्य शहरों से मिल कर बना है।

पहला- पुरानी दिल्ली जो काफ़िरों ने बनायी और साल 1188 में पराजित हो कर सुल्तान आदि के क़ब्ज़े में आयी। दूसरा शहर है सीरी – कदाचित श्री का अपभ्रंश। तीसरा है तुग़लक़ाबाद जो बिन तुग़लक़ के अब्बा ने बसाया। चौथा है जहांपनाह जो सुल्तान आदि के दरबार और महल आदि का शहर है।
इब्न बतूता आया इस शहर में 1334 में- उद्देश सुल्तान के यहाँ नौकरी करना। बड़े साफ़ अल्फ़ाज़ों में इब्न बतूता ने इन चार जगह के नाम लिखे है। ये भी लिखा है दीवारो से घिरी दिल्ली अद्भुत है। अब हमारे इतिहासकार गैंग लिखते है पुरानी दिल्ली को शाहजहाँ ने साल 1648 में बसाया शाहजहानाबाद के नाम से। मतलब जो शहर तीन सौ साल पहले इब्न बतूता देख रहा था वो जगह खुर्रम खुर्रम पापड़ वाले (शाहजहाँ) तीन सौ साल बाद बसायेंगे। इस मक्कारी का क्या किया जाये।
इब्न बतूता बग़ल में जूता!
इब्न बतूता दिल्ली की कैथेड्रल मस्जिद के बारे में लिखता है-
सफ़ेद पत्थर से बनी ये इमारत लकड़ीविहीन है- सीमेंट का भी प्रयोग नहीं किया है। सीसा से इन पत्थरों को जोड़ा गया है। प्राणंड में एक अद्भुत खंबा है – किस धातु का बना है किसी को नहीं ज्ञात। लोग इसे हफ़्त जुश अर्थात् सात धातु से बना बताते है- कदाचित अष्टधातु की बात होगी। इस मस्जिद के ईस्ट गेट पर दो विशाल पीतल की मूर्तियाँ है जिन्हें रौंद कर लोग अंदर बाहर जाते है।
इब्न बतूता ये भी साफ़ लिखता है ये इमारत पहले एक बुतख़ाना थी जिसे जीतने के बाद कन्वर्ट अर्थात् तब्दील अर्थात् बदला अर्थात् परिवर्तित अर्थात् चोरी सीनाजोरी अर्थात् डकैती डाली गई। इस जगह एक मीनार भी है जो लाल पत्थर की बनी है जिसके टॉप पर सफ़ेद पत्थर की कारीगरी है और स्वर्ण सेब है। इस आहाता इतना विशाल है कि यहाँ से हाथी भी निकल जाये। आगे सुल्तान का नाम भी लिखता है जिसने ये बनवायी- कदाचित मीनार!
१- किस सफ़ेद मस्जिद की बात इब्न बतूता कर रहा था? कोई गेस?
२- मूर्तियाँ की उपस्थिति कोई हऊवा या hoax नहीं है- ये इतिहास था। इसे झुठलाने वाले को ये पन्ना पढ़ाया जाना चाहिए।
३- कोई जनाब इल्म झाड़ते यदि मिले- चोरी की जगह इबादत क़ुबूल नहीं होती – इसे भी ये पन्ना पढ़ाया जाना चाहिए।
बिन तुग़लक़ को इतिहासकारों ने wisest fool बताया है- कोई सनकी कोई मूर्ख कहता है। तुग़लक़ ने दिल्ली से राजधानी दौलदाबाद शिफ्ट की थी- देवगिरी को। इतिहासकार गैंग बतलाते है कारण थे- बीचोंबीच भारत के राजधानी हो और बाहरी आक्रमण से बच सके। लेकिन हक़ीक़त और कुछ थी जो इब्न बतूता ने लिखा है।
बतूता लिखता है बिन तुग़लक़ को लोग बहुत नापसंद करते थे और गाली गलोच से भरे गंदे गंदे ख़त लिख सुल्तान के महल में फेंक देते- सुल्तान पढ़ बहुत तिलमिला जाता था। बदले में तुग़लक़ ने पूरी दिल्ली ख़ाली करवाई और सबको दौलतबाद शिफ्ट करवाया। दिल्ली को आसपास क़स्बो के लोगो से आबाद करवाया। ये बदला था तुग़लक़ का उन गालीयो के लिए।
तुग़लक़ ने ऑर्डर दिये हर किसी को जाना पड़ेगा- अंत में एक लूला और अंधा बच गए दिल्ली में। तुग़लक़ ने लूले को क़त्ल करवाया और अंधे को घसीटकर दौलतबाद ले जाने का हुकुम दिया। उस अंधे की केवल एक टांग वहाँ पहुँची – शेष अंग पहले ही गिर, अंगभंग हो गये।
मुख्य कारण गाली थी- बताओ गाली के चक्कर में सब को चालीस दिन की पद यात्रा पर भेज दिया तुग़लक़ ने। कमाल की बात- आज भी दिल्ली में तुग़लक़ रोड है जिधर आज के तुग़लक़ रहते है।
तुग़लक़ फूल नहीं था- फूल बनाया गया हम सब को !
देवगिरी को बिन तुग़लक़ ने दौलताबाद का नाम दिया था। तुग़लक़ मूर्ख ना था जो बिना सोचे समझे दिल्ली से यहाँ आ गया था। पहला मक़सद था गालीबाज़ प्रजा को सबक़ सिखाना। दूसरा मक़सद और बड़ा था।
इब्न बतूता ने अपनी किताब में साफ़ लिखा है – दौलताबाद मराठों का स्थान है जिनकी स्त्रीया अत्यंत सुंदर होती है- नाक और भौहें ख़ास तौर पर। इन महिलाओं पर कुछ अभद्र टिप्पणी करते आगे बतूता लिखता है- ये स्थान भारत में सबसे ज़्यादा टैक्स और लैंड रेवन्यू प्रदाता है। इस जगह अंगूर और अनार की सालाना दो बार खेती होती है और इधर के व्यापारी बहुत अमीर सर्राफ़ है।सत्रह करोड़ का टैक्स देने वाली जगह को कौन सुल्तान अपनी राजधानी ना बनाना चाहेगा।
इस स्थान के बाज़ार ग़ज़ब है- रमणीक जगह है और इधर के ब्राह्मण शुद्ध शाकाहारी है। चावल सब्ज़ी और sesame तेल का मुख्य प्रयोग करते है- सफ़ाई बहुत रखते है और छह पीढ़ी दूर तक अपनों में विवाह नहीं करते – शराब नहीं पीते आदि।
कौन सा स्थान है भारत का जिसे दूषित ना किया गया हो।

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