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मेदांता हॉस्पिटल लखनऊ में व्यवस्थाएं और लोग

Nitin Tripathi

by Nitin Tripathi
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लखनऊ मेदांता हॉस्पिटल में किसी से गया था मेरे सामने एक छोटे नेता जी भी बैठे थे . पत्नी के साथ चेकप कराने आए थे . एक पुलिस वाला पर्मनेंट खड़ा हुआ था बग़ल में जैसे इतने हाई टेक अस्पताल में घुस कर कोई उन पर हमला कर देगा और अगर कोई इतनी हिम्मत वाला होगा भी तो ये एक पुलिस वाला उसका कुछ न कर पाएगा. नेता जी के साथ उनका PA, एक दो चमचे आदि भी थे . नेता जी फ़ुल वॉल्यूम में इंस्टा रील देख रहे थे बग़ैर इस बात का लिहाज़ / शर्म किए कि वह अस्पताल में बैठे हैं.

यहाँ हर काम नम्बर से चल रहा था पर हर दूसरा आदमी VIP बनने की कोशिश कर रहा था. एक डॉक्टर त्रिपाठी की पत्नी आई हुई थी जो डाक्टरी कोटे से VIP हैं. हर टेबल पर कोई न कोई जुगाड़ / VIP है. सामान्य जनता भी लाइन में तो खड़ी ही नहीं हो सकती तो दाएँ बाएँ से कूद कर जाने की कोशिश करना, लाइन में बिल्कुल सट कर खड़े होना धक्का मुक्की करना आदि कॉमन है.

लेकिन इस सबके बावजूद ख़ास बात यह कि यहाँ सिस्टम काम कर रहा था. बिल्कुल पर्फ़ेक्ट. स्टाफ़ इतने प्रेसर के बावजूद सबसे एक जैसे प्रेम से ही बात करता है. डॉक्टर से हर दूसरा VIP नेतागिरी झाड़ रहा था लेकिन डॉक्टर VIP से भी और सामान्य जनता से भी बिल्कुल एक तरीक़े से व्यवहार कर रहे थे . आपको यहाँ स्टाफ़ पर क्रोध न आएगा बल्कि सिस्टम तोड़ने की कोशिश करने वालों पर क्रोध आएगा.

अक्सर जब भारत में जंगल राज की बात होती है तो लोग कुतर्क देते हैं कि यहाँ ऐसे ही चलता है. आप SBI चले जाइए और उसके पश्चात ICICI चले जाइए, दिख जाएगा सिस्टम कैसे काम करना चाहिए. आप BSNL के सेंटर में चले जाइए और फ़िर जीयो के सेंटर में चले जाइए दिख जाएगा सिस्टम और प्रॉसेस का अंतर क्या होता है. आप PGI चले जाइए और फ़िर मेदांता चले जाइए अंतर दिख जाएगा.

और ऐसा नहीं है कि सरकारी में सिस्टम नहीं बन सकता. पास्पोर्ट ऑफ़िस चले जाइए दिख जाएगा एक अच्छा सिस्टम क्या होता है. दिल्ली मेट्रो जब बन रही थी तो मैं स्वयं हँसता था कि जिया देश में रेलवे से लोग सीशा बल्ब लेटरीन का मग तक चुरा ले जाते हैं वहाँ मेट्रो चलेगी? चली और क्या ज़बर्दस्त चली. ये भी सरकारी रेल ही है, एक एक मिनट की पक्की, साफ़ सुथरी, बिल्कुल लेटेस्ट टेक के साथ

साफ़ दिखता है जहां जिन लोगों में जुनून होता है कुछ अच्छा करने का वह कर जाते हैं. बाक़ी लोग बहाने देते रहते हैं जनसंख्या का, पैसे की कमी का, नेताओं का, VIP कल्चर का, जनता का.
करने वाले इसी जनता के साथ मेट्रो चला लेते हैं, ICICI बैंक चला लेते हैं, मेदांता चला लेते हैं, पास्पोर्ट ऑफ़िस चला लेते हैं.

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