बर्तोल्त ब्रेख़्त को अभी तक पढ़ते और सुनते रहे हैं। ब्रेख़्त के नाटक भी। लेकिन आज ब्रेख्त को देखना भी नसीब हुआ। हे ब्रेख़्त के मार्फत। ब्रेख़्त को देखना , महसूसना और उन में खो जाने का यह अवसर दिया आज लखनऊ की नाट्य संस्था दर्पण ने। लखनऊ के संगीत नाटक अकादमी के बाल्मीकि रंगशाला में उर्मिल कुमार थपलियाल द्वारा लिखित और निर्देशित हे ब्रेख़्त के मार्फ़त सत्ता व्यवस्था को चुनौती के सफ़र और इस पर निरंतर चोट और चोट से निकलती आग से गुज़रना था। ऐसी आग जो इस सर्दी को भी सुन्न कर दे। थपलियाल ने इस नाटक में जगह-जगह ब्रेख़्त की कविताओं को गूंथ कर व्यवस्था की विद्रूपता को एक नया ही रंग परोस कर उस पर करारा और कारगर हथौड़ा चलाया है।