तृणमूल कांग्रेस नेता कीर्ति आजाद ने आज एक फेक वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर कर दिया। मतलब पश्चिम बंगाल का वीडियो उत्तर प्रदेश का बताकर साझा कर दिया। इस फेक कन्टेन्ट से गुजरने के दौरान कीर्ति से जुड़ा एक किस्सा याद आया।
बात थोड़ी पुरानी है। कीर्ति आजाद उन दिनों बीजेपी में हुआ करते थे। उनका एक प्रिय छात्र नेता एबीवीपी से अलग होकर अपना छात्र संगठन बनाने की तैयारी कर रहा था। यह बात कीर्ति को इसलिए नागवार गुजरी क्योंकि उन्हें लगता था कि इस छात्र नेता को उनकी वजह से लोग जानते हैं और उसने इतना बड़ा फैसला उनसे पूछे बिना लिया कैसे?
दूसरी बात उनके पास डूसू चुनाव में सक्रिय नेताओं के फोन आने लगे कि इस तरह एबीवीपी को नुकसान होगा। उसे समझाइए। कीर्ति ने अति आत्मविश्वास में फोन करने वालों को भरोसा दिया कि कोई नहीं। उसे एक बार बोलने भर की बात है, वह बैठ जाएगा। उसे चार लोग दिल्ली विश्वविद्यालय में वोट देने वाले नहीं मिलेंगे।
उन्होंने छात्र नेता को फोन किया और बिना किसी भूमिका के चुनाव में बैठ जाने को कह दिया। छात्र नेता निर्णय कर चुका था। उसने कहा, सारी तैयारी हो चुकी है। मैं यह चुनाव डूसू में बिहारियों के लिए लड़ रहा हूं। उनकी भागीदारी के लिए लड़ रहा हूं। आपको तो मेरा साथ देना चाहिए। उलटा आप मुझे चुनाव ना लड़ने की सलाह दे रहे हैं।
यह सब सुनकर कीर्ति ने अपना आपा खो दिया। उन्होंने कहा कि तुम्हे लोग मेरी वजह से जानते हैं। मैं तुम्हें कह रहा हूं कि चुनाव मत लड़ो।
छात्र.नेता ने उसके बाद जो कहा, वह वास्तव में किसी सबक से कम नहीं था— ”आपको लोग आपकी पिताजी की वजह से जानते हैं। आप जब उनकी पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में आ गए। जो मेरी नजर में बिल्कुल गलत नहीं है। सबको अपना रास्ता और विचार चुनने का अधिकार होना चाहिए। तो कम से कम आपको मेरे फैसले का सम्मान करना चाहिए और मुझे चुनाव लड़ने से रोकने की सलाह नहीं देनी चाहिए।”
कीर्ति आजाद को छात्र राजनीति के नए रंगरुट से इस जवाब की अपेक्षा नहीं होगी लेकिन कालांतर में इस बहस का परिणाम इस रूप में निकला कि वह छात्र नेता लौटकर फिर विचार परिवार में आया और कीर्ति आजाद लौटकर अपने पिताजी की पार्टी में चले गए।