एक बात नोट करने योग्य है।
एक अति विशाल संख्या के सनातनी लोग दंगाइयों के विरूद्ध चाहे कितना भी आक्रोश दिखला ले, सनातन धर्म का अपमान करने वालो के विरोध में भृकुटियां तान ले, मोदी-शाह को गरिया ले, उनके वोट को अपनी ओर खींचने के लिए कोई भी विपक्षी दल या नेता तैयार नहीं है।
गैर-भाजपा किसी भी पार्टी ने इन आक्रोशित लोगो के साथ सहानुभूति नहीं दिखायी; इनके साथ रैली नहीं निकाली; दंगाइयों के विरुद्ध स्टेटमेंट नहीं दिया।
आखिरकार लोकतंत्र वोट एवं बहुमत से चलता है। अगर जनता का एक बड़ा वर्ग क्रोधित है, तो क्या उसे अपनी ओर जोड़ने का प्रयास नहीं करना चाहिए?
दो वर्ष बाद आम चुनाव है। उसके पूर्व राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल इत्यादि राज्यों में चुनाव है। इन सभी चुनावो में भाजपा ही एकमात्र प्रतद्वंद्वी है।
विपक्षी दलों के समक्ष एक सुनहरा अवसर था कि वे ऐसे कई करोड़ वोट अपनी ओर जोड़ ले। यहाँ तक कि ऐसे कई लोगो ने किसी ना किसी आक्रोश के कारण अखिलेश, केजरीवाल, ममता, राहुल (राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश इत्यादि), उद्धव, पवार, चंद्रशेखर राव, जगन रेड्डी, स्टालिन इत्यादि को वोट दिया था।
लेकिन फिर भी यह विपक्षी समूह भाजपा समर्थको के आक्रोश को नेतृत्व नहीं दे रहा है; उनकी चिंताओं को दिशा नहीं दे रहा है। इसे छोड़िये, उनके साथ सहानुभूति भी नहीं दिखला रहा है।
ऐसा क्यों है?