अभी कुछ दिन पहले worship act 1991 पर मैं कुछ रियल और गुप्त बातें बताती हूँ तो लोगों ने असहमति व्यक्त किया जबकि अब सुप्रीम कोर्ट उसी बात पर मोहर लगा रही है।
मैं बार बार कहती हूँ किसी से भी नफरत मत करो यहां तक की अपने घोर शत्रु से भी क्योंकि नफरत आंखें और दिमाग दोनों पर पर्दा डाल देती है और यदि शत्रु से जीतना है तो आँखें और दिमाग खुला रखना पड़ता है……
और एक बात बात मैं फिर कह रही कि गांधी जी ने जितना हिंदुओं का भविष्य रक्षण किया उतना उस समय तक किसी ने नहीं किया, वो जानते थे ये सोई हुई कौम है इसे जगाना बड़ा मुश्किल है इसलिए इनके शत्रुओं को खुलने का मौका न दो….बन्दा सिर्फ आखिरी एक दांव नहीं जीत पाया…और वही कांटा आज तक चुभ रहा
आपने जितना मन किया उतना गाली दिया पर कभी दिमाग से नहीं सोचा कि गांधी के दूसरे हिस्से को कैसे भरा जाय……
अफ्रीका के अपने एक मित्र के प्रश्न के उत्तर में गांधी जब लिखते हैं ठंडक और प्रचंड ताप दोनों ही बारी बारी से काम करने पर मजबूत से मजबूत चट्टान टूट जाती है।
गांधी ने बखूबी ठंडक का किरदार अपनाया लेकिन प्रचंड ताप अभी तक हिन्दू समाज में नहीं आया।
गाँधी की रणनीति तब समझ आती है जब उनके उस समय के प्रचंड शत्रुओं या घोर असहमति रखने वाले गैर हिन्दू पक्षों को पढ़ो समझो…!
कौन आखिर सोते हुए घोड़े पर पैसा लगाना चाहेगा ,पर घोड़े का रक्षण करना है तो कुछ न कुछ तो उपाय करना ही होगा उसमें हानि भी होगी लेकिन फिर भी हानि पर ध्यान न देकर भविष्य को साधने के लिए वर्तमान हानि को भूलना ही पड़ेगा।
100 वर्ष का वृक्ष लगाना इतना आसान नहीं होता जो दूसरा पक्ष है वो बखूबी समझता है इस बात को,
यह पोस्ट गांधी की प्रशंसा के लिए नही बल्कि नीतियों को
न समझने और जो खालीपन है उसपर न विचार करने के हमारे दोष पर है।
शब्द में बड़ी शक्ति होती है उसका मर्म समझना सबके बस का नही..!

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