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किसी ने मुझसे प्रश्न पूछा था, वे कौन से पांच विन्दु हैं जो मेरे लिए हिन्दू राष्ट्र का आधारभूत तत्व होंगे? हिन्दू राष्ट्र से मेरी क्या अपेक्षाएं हैं.

मेरे पांच में से दो नंबर तो पहले ही कट गए, मेरे पास सिर्फ तीन विन्दु हैं…
1. स्वतंत्रता : आर्थिक और जीविका की, विचारों की, मतभिन्नता की,
2. समानता : कानून की दृष्टि में, सामाजिक व्यवहार में.
3. सुरक्षा : अपराध से, आक्रमण से, निरंकुश और असहिष्णु बौद्धिक शक्तियों और रिलीजियस कल्ट्स से.
बाकी सब हम खुद क्रिएट कर लेंगे. हमारी जो बौद्धिक, नैतिक और भौतिक सम्पदा खो गई है, वह मूलतः स्वतंत्रता, समानता और सुरक्षा का नेचुरल बाई प्रोडक्ट है.
देवेंद्र भाई ने अगला महत्वपूर्ण प्रश्न पूछा है, अगर यही तीन अपेक्षाएं हैं तो इनके लिए हिन्दू राष्ट्र बनाने की क्या आवश्यकता है? ये तीनों विन्दु तो सिद्धांत रूप में हमारे संविधान में भी स्वीकार किए गए हैं… समस्या तो सिर्फ उनके इंप्लीमेंटेशन की है.
जी नहीं! ये विन्दु संविधान में प्रभावी नहीं हैं. संविधान में समाजवाद और वेलफेयर स्टेट की अवधारणा है जो आर्थिक और बौद्धिक स्वतंत्रता के विरुद्ध है. यदि सरकार आपकी आय को आपसे लेकर दूसरे को देने का अधिकार रखती है तो उतने अनुपात में यह आपकी आर्थिक स्वतंत्रता का हनन है. और यह आप खुशी खुशी तो नहीं होने देंगे. तो इसके लिए पहले आपका ब्रेनवाश किया जायेगा, या आपकी सेंसरशिप की जाएगी. तो जब आप अपनी आर्थिक स्वतंत्रता खोते हैं तो अन्य सभी स्वतंत्रताएं भी खोते हैं.
कानून के समक्ष समानता और सामाजिक समानता का भाव संविधान में व्यक्त तो किया गया है लेकिन अनेक विंदु सामाजिक वैमनस्य का पोषण करते हैं, जिनके रहते यह प्रभावी नहीं है.
अपराध से सुरक्षा राज्य का मूल फंक्शन है, लेकिन वह समाजवादी स्टेट के दुसरे फंक्शन्स द्वारा न सिर्फ डाइल्यूट हो गया है, बल्कि समाजवाद की मूल अवधारणा ही सामाजिक नैतिकता को खंडित करती है. वह बिना श्रम के दूसरे के श्रम के फल पर अधिकार को स्वीकृति देती है और यह अपराध को विधिक और नैतिक स्वीकृति देता है, ना कि उससे सुरक्षा.
सेकुलरिज्म तो सक्रिय रूप से असहिष्णु और निरंकुश बौद्धिक और रिलीजियस शक्तियों को भारत पर आक्रमण करने का अधिकार देता है, न कि हमारी मतभिन्नता की परंपरा को सुरक्षित करता है.
तो संविधान जहां एक ओर दबी जुबान से इन बिंदुओं को मेंशन करता है, वहीं दूसरी ओर सक्रिय रूप से दस गुना अधिक शक्ति से इन लक्ष्यों के विरुद्ध प्रोविजन देता है. हमारा संविधान मूलतः एक समाजवादी, वामपन्थी डॉक्यूमेंट है. उसका मूल उद्देश्य हिन्दू राष्ट्र के मूल उद्देश्यों से कॉन्फ्लिक्ट में है. संविधान हमें वह समृद्धि और स्वतंत्रता कभी सुनिश्चित नहीं करेगा जो हमारी हिन्दू राष्ट्र से अपेक्षाएं हैं.

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