हमारी सरकारें हमारे वैज्ञानिकों को भी अपने ही जितना योग्य मानती हैं। इसीलिए वे किसी चेतावनी को चेतावनी तब तक मानती ही नहीं, जब तक कि वह नासा से न आ जाए।
नासा की चेतावनी तो अब आ रही है। वैसे मोटे तौर पर #हिमालय को लेकर वह कई बार बोल चुका है, लेकिन सूक्ष्म आकलन खास जोशीमठ क्षेत्र पर मुझे नहीं ध्यान है कि उसने इससे पहले कभी की हो। लेकिन जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, आईआईटी रुड़की और आईआईटी कानपुर यह चेतावनी कई बार दे चुके हैं।
अब #जोशीमठ को ही लीजिए।
जाहिर है, इन चेतावनियों को न तो सरकार ने सुना और न ही लोगों ने।
सरकार ने अगर सुना और साथ ही गुना भी होता तो उस क्षेत्र में विकास कार्यों से पहले चेतावनियों के संदर्भ में ठोस उपाय किए होते।
लोगों ने अगर सुना होता तो खंभों पर चार मंजिले होटल न बनाती। जहाँ घर बनाने के भी हालात नहीं हैं, वहाँ बाजार न बसाती। और बसाती भी तो कम से कम पानी के उन सोतों को रोकने की वाहियात कोशिश न करती जो प्राकृतिक रूप से भीतर-भीतर निकल कर अपने रास्ते जा रहे हैं।
पहाड़ के लोग बताते हैं कि दो पीढ़ी पहले का पुराना पहाड़ी पानी के किसी सोते के रास्ते में अपनी ओर से लकड़ी तक पड़े रहने देना पाप मानता था। आज का पहाड़ी उसी में खम्भ लगाकर होटल खड़े कर देता है।
सरकारी तंत्र का हाल भी इससे अलग नहीं है। सारे सर्वेक्षण, सारे अध्ययन केवल मनोरंजन के लिए हैं। बुद्धि विलास। सजावट। बस यह बताने के लिए संबंधित विभागों में कुछ काम हो रहे हैं। उनसे कोई सबक लेने की जरूरत नहीं समझी जाती।
काश! इन अध्ययनों-सर्वेक्षणों से योजना के स्तर पर ही कुछ सीख ले ली जाती।
नोट: यहाँ इस कुतर्क की कोई गुंजाइश नहीं है कि विकास कार्य नहीं होने चाहिए। विकास कार्यों के विरुद्ध कुछ भी कहने से पहले बिजली, मोटर, मोबाइल, कंप्यूटर आदि का उपयोग पूरी तरह छोड़कर आएँ।