रक्षा बंधन के दिन गांव कस्बे के पंडितजी लोग घर घर जाकर रक्षा सूत्र बांधते थे। रक्षा बंधन की कहानी से पंडितों को बाहर करके इसे हिन्दू मुस्लिम कहानी से जोड़ दिया गया। जहां हर बार भाई मुसलमान होता था और हिन्दू बहन उसे चिट्ठी लिखती थी।
वह बहन को बचाने दौड़ा चला आता था। यह तो कहानियो की बात हुई। जमीन पर इससे अलग चल रहा था। जौहर की कहानियां आपने पढ़ी होगी। किस तरह हजारों हजार बहनों ने अग्नि में अपने इन्हीं ‘कथित भाइयों’ की वजह से आग में कूद कर जौहर किया।
लव जिहाद भी यही ‘कथित भाई’ अपनी कथित बहनों के साथ करते हैं। मुस्लिम स्टैंडअप कमेडियन इस बात को मंच से भी कह देते हैं कि हमारा मजहब अलाउ करता है। जिससे राखी बंधवाओ, उससे निकाह कर लो। तो कर लेते हैं।
हिन्दू पंरपरा में तो भाई बहनों का एक ही पर्व है भैया दूज। उसकी चर्चा फिल्मों में कम हुई इसलिए उस त्योहार के साथ ग्लैमर नहीं जुड़ पाया।
इसलिए वह पर्व चुपके से आता है और चुपके से चला जाता है, भाई बहनों के बीच से। भैया दूज पर तो वाॅलीवुड की फिल्मों में गीत भी नहीं है, जैसे रक्षाबंधन पर मिलते हैं।