Home विषयजाति धर्मईश्वर भक्ति रावण कहे कि मेरे दादा पुलस्त्य का आर्यों पर बहुत अहसान है

रावण कहे कि मेरे दादा पुलस्त्य का आर्यों पर बहुत अहसान है

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यदि रावण कहे कि मेरे दादा पुलस्त्य का आर्यों पर बहुत अहसान है,

यदि रावण कहे मेरे पिता के भ्राता अगस्त्य और वशिष्ठ का बहुत अहसान है तुम आर्यों पर , कई बार उन्होंने आर्यों की रक्षा की है,
तो यह बताईये “राम” को क्या करना चाहिए..?
क्या उन्हीं अहसानों के तले दबकर रावण को सारे पापों के लिए क्षमा करके उसे उधम मचाने देना चाहिए..?
या रावण को यह अहसास दिलाना चाहिए कि तू भले ही पुलत्स्य वंश में जन्मा है लेकिन तेरे कर्म उज्ज्वल कुल की कीर्ति को मलिन कर रहें हैं और तुझे दंडित करके यह बताना आवश्यक है कि धर्म का कोई वंश नहीं होता जो इसे धारण करे वही उसी वंश का होगा….
तू पुलत्स्य ऋषि, अगस्त्य ऋषि, गुरुवशिष्ठ की ओट लेकर अपने पाप कर्मों को जारी नहीं रख सकता,
पुलस्त्य ऋषि की धर्म पीढ़ी का मैं हूँ तू नहीं..!
तू अधर्म की पीढ़ी का है जा उसी में अपनी पीढ़ी ढूढ….
हिन्दू (सिखों)को इस विषय पर विचार करना चाहिए, गुरु हमारे हैं न कि उन चंद खालिस्तानी शक्तियों के ।
गुरुओं के वंशज हम है धर्म पीढ़ी हमारी है
खालिस्तानी म्लेच्छों के वंशज हैं और अधर्म पीढ़ी उनकी है……
इस बात में कोई शंका नहीं होनी चाहिए।
हिन्दू ही “सिख” है आदि अनादि काल से सिखी यानी गुरु शिष्य परंपरा का पालन करता आया है उसकी मर्यादा को समझता आया है, सम्मान करता आया है।
जो हिन्दू नहीं वो सिख तो कदापि हो ही नहीं सकता…
जिस प्रकार से रावण गुरु वशिष्ठ पर अपना दावा नहीं ठोक सकता वैसे ही खालिस्तानी गुरुओं पर अपना दावा नहीं ठोंक सकता , वो उसी दिन सिखी से बाहर हो गए जिस दिन उन्होंने खालिस्तानी आ#तं#कवाद को अपनाया .

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