उत्तर प्रदेश चुनाव के संदर्भ में मुझे कुछ नया कहने की आवश्यकता नहीं. मैंने पहले से ही सारी पोस्ट पर जो बोला हुआ है, उसका सारांश यह है कि अवध, बुंदेलखंड, ब्रज में तगड़ी लहर चली. रूहेल खंड में भाजपा के लिए समस्या थी पर यह इतना ख़राब नहीं गया. शेष सब स्क्रिप्ट के अनुसार ही चला.
इन चुनावों में भाजपा के लिए साइलेंट लहर थी लाभार्थी और महिला वोटर की. भाजपा कार्यकर्ता की उदासीनता, कुछ सरकारी कर्मियों का अति से बढ़ स्वार्थ, विधायकों से थोड़ी नाराज़गी भाजपा के लिए नेगेटिव थे. मुख्य टक्कर सपा से थी तो गुंडा राज का भय एक पॉज़िटिव फ़ैक्टर था भाजपा के लिए.
सपा के लिए इन चुनावों में ज़मीन पर कुछ पॉज़िटिव न था शिवाय उसके कार्यकर्ताओं के अति उत्साह के. इस अति उत्साह का फ़ायदा सपा से ज़्यादा भाजपा को मिला क्योंकि सपा वाले अति उत्साह में धमकी देते नज़र आए सबको. ऐसे में जो भाजपा से नाराज़ थे मजबूरी वस ही सही अंत तक भाजपा के ख़ेमे में थे क्योंकि सपा के कार्यकर्ता, स्वयं अखिलेश सबको धमकियाँ दे रहे थे कि सूची तैयार है. थोड़ी अंटी इनकम्बेसी, मुस्लिम वोटों का इकतरफ़ा सपा में जाना, थोड़े से सत्ता विरोधी वोट, थोड़े मठाधीश वोट, थोड़े ठेकेदार, प्रॉपर्टी डीलर, बिल्डर लॉबी के वोट, Y वोट के अतिरिक्त ज़मीन पर सपा का कोई वोट बैंक न दिखा, हाँ जिन पत्रकारों को दस लाख से एक करोड़ तक पहुँचा उन्हें अवश्य खूब दिखा यूटूब पर.
ओवेराल भाजपा की सरकार आने में कोई संदेह नहीं. सीटें कितनी आएँगी यह बैलट खुलने पर ही पता चलेगा. सीटें ढाई सौ भी हो सकती हैं, तीन सौ भी और साढ़े तीन सौ भी. हमारे ऐंगल से पूर्ण बहुमत से रिपीट सरकार बन जाना उत्तर प्रदेश में मिरेकल रहा है, पिछले कई दसकों से UP में रिपीट फ़ुल मेजरिटी सरकार न बनी. भाजपा इस बार कई मिथ ध्वस्त करने वाली है.
फ़्री टिप: सरकारी अफ़सर लाबी का एक वर्ग, जो दो महीनों से खूब अखिलेश के चक्कर लगा रही थी, अब तीन दिन है तुरंत बाप बदल लें, फटाफट भाजपा संगठन, भाई साहब, RSS में ‘मिठाई’ लेकर पहुँच परिक्रमा आरम्भ कर दें, कल्याण होगा.