कॉमरेड दिलीप पांडेय हमेशा मुझसे हिन्दूओं के बीच जाति के नाम पर होने वाले नीचे और अगड़े के बीच भेद भाव की बात करता था। वह हमेशा हिन्दू समाज के दलित के पक्ष में खड़ा दिखता, बोलता और लिखता था। इस्लाम की खूब तारिफ करता था। वास्तव में दिलीप व्यक्ति नहीं एक प्रवृत्ति का नाम है।
एक बार बातचीत में पूछा था उससे कि तुम मुसलमानों की इतनी तारीफ करते हो, क्या कोई मुसलमान दोस्त भी है तुम्हारा। या फिर सिर्फ उनके संबंध में लिखते—बोलते ही हो।
उसने एक दर्जन नाम बता दिए। सभी नामों को ध्यान से सुनने के बाद उससे एक सवाल और पूछा था —
”ये सारे सैयद, शेख और पठान परिवार वाले ही दोस्त हैं, या कोई ऐसा दोस्त भी है जिसका परिवार पाखाना साफ करता हो। कोई ऐसा दोस्त भी है जो मैला ढोता हो, कोई ऐसा दोस्त भी है पांडेयजी जिसका परिवार मरे हुए जानवरों का चमरा उतारता हो। उनके बीच जाकर कुछ दिन क्यों नहीं बिताते। उन्हें हिन्दू से मुसलमान यह धोखा देकर बनाया गया था कि तुम्हारी बेटी से शेख साहब ब्याह करेंगे और तुम्हारे घर पठान की बेटी ब्याह कर आएगी। थोड़ा पता कीजिए कि ऐसे कितने कन्वर्ट हुए मुसलमानों के घर पठानों ने अपनी बेटी बियाही है?”
मतलब जो दलित थे उनके साथ यहां भेदभाव हो रहा था। उसमें कोई संदेह नहीं है लेकिन कन्वर्ट होने के बाद तो उनके साथ भेदभाव के साथ धोख भी हुआ। इस पर कुछ नहीं कहेंगे?
यह सब सुनकर कॉमरेड दिलीप पांडेय को पाखाना लग गया और वे हगने चले गए। लंबा समय हुआ कॉमरेड से बिछड़े, यह पोस्ट उनतक पहुंचे तो कॉमरेड पांडेय संपर्क कीजिए।