राजनीति की मंडी बड़ी नशीली है,
इस मंडी में सबने मदिरा पी ली है।
कमरबंद पुख्ता हैं सिर्फ दलालों के,
आम आदमी की तो धोती ढीली है।
उपरोक्त पंक्तियां प्रख्यात कवि रामेन्द्र त्रिपाठी जी ने 80 के दशक में लिखीं थीं। लेकिन इनदिनों वो पंक्तियां मुझे बहुत याद आ रही हैं। मुझे याद आ रही हैं उन 14 नौजवानों की लाशें जो किसी मां, किसी पिता, किसी बहन,किसी बेटी की उम्मीदों का चिराग थे। लेकिन एक जातिवादी गुंडे लफंगे द्वारा गुजरात में लगायी गयी जहरीले जातिवाद की आग में उन 14 नौजवानों की जिंदगियां भस्म हो गयीं थीं।
उन नौजवानों के अंतिम संस्कार के बहाने वो जातिवादी गुंडा एक होटल में शराब और शबाब के साथ जश्न मनाते हुए एक स्टिंग ऑपरेशन में रंगे हाथ पकड़ा गया था। यह सच्चाई कोई सदियों पुराना किस्सा-कहानी नहीं है। यह सच्चाई केवल 5 वर्ष पहले की है। पांच वर्ष पहले यह जातिवादी गुंडा गुजरात की सड़कों पर लोगों के खून से जातिवादी हिसा की होली राक्षसों की तरह खेल रहा था।
उन 14 नौजवानों की लाशों का जिम्मेदार वही जातिवादी गुंडा धूमधाम से आज अहमदाबाद में भाजपा में शामिल कर लिया गया है।
गुजरात के हर नागरिक तक यह संदेश पहुंचना चाहिए ताकि हमारी आपकी भावनाओं के साथ इतना अश्लील मज़ाक करने वालों को कठोर सबक मिले। उस जातिवादी गुंडे के राजनीतिक मंसूबे सफल नहीं हों।