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संयोग को मानते हैं?

by Rudra Pratap Dubey
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संयोग को मानते हैं?
नहीं मानते हैं तो आपको अटल बिहारी बाजपेयी और गोपालदास ‘नीरज’ के विषय में बताता हूँ। दोनों का जन्म 10 दिन के अंतराल में हुआ। दोनों के व्यक्तित्व की जाग्रत भूमि कानपुर रही और मजेदार बात है कि 1946 में अटल जी और नीरज जी कानपुर के डीएवी कॉलेज में एक दूसरे से सटे कमरे में ही रहते थे।
कानपुर ने ही दोनों को कविता के क्षेत्र में आगे किया और फिर दोनों ही ग्वालियर, आगरा, अजमेर, दिल्ली में हुए कवि सम्मेलनों में साथ-साथ पहुँचे। 1967 में नीरज जी कानपुर से चुनाव लड़े और अटल जी बलरामपुर से। नीरज जी जहाँ निर्दलीय लड़ते हुए भी तीसरे स्थान पर आए वहीं अटल जी ने पिछली चुनाव का बदला लेते हुए इस बार सुभद्रा जोशी को बड़े अंतर से हराया था।
नीरज जी को तीन बार फ़िल्म फेयर पुरस्कार मिला और अटल जी तीन बार देश के प्रधानमंत्री बने। नीरज जी और अटल जी दोनों ही हर साल बढ़ते गए और अपनी-अपनी विधा के नायक बनते गए और दोनों ने ही AIMS में ही अपने शरीर को छोड़ा। यहाँ पर ये बात गौरतलब है कि नीरज जी ने 9 साल पहले ही कह दिया था कि मेरी और अटल जी की मृत्यु में ज्यादा से ज्यादा एक महीने का अंतर होगा, और यही हुआ भी।
यही नहीं, मृत्यु पर लिखी गयी दोनों की पंक्तियाँ भी कितनी एक जैसी लगती है –
मृत्यु पर अटल जी ने लिखा-
मौत की उमर क्या है, दो पल भी नहीं
जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं
लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं
नीरज जी ने लिखा-
न जन्म कुछ, न मृत्यु कुछ
बस इतनी सिर्फ बात है, किसी की आंख खुल गई,
किसी को नींद आ गई
जिंदगी मैने गुजारी नहीं, सभी की तरह
मैंने हर पल को जिया, पूरी जिदंगी की तरह।
दोनों महामानवों और उनके जीवन के अनगिनत संयोगों को प्रणाम है।

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