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सत्ता_की_जोंक

देवेन्द्र सिकरवार

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अगर आपने मध्यकालीन इतिहास पढ़ा हो तो आपको जानकर हैरत होगी कि जब ये लोग कमजोर पड़ते हैं तो झुककर अधीनता स्वीकार कर टैक्स देने तक को तैयार हो जाते थे।
मध्यएशिया के एक हिंदू महानायक ने जिसकी कथा आप जल्द ही पढ़ेंगे, उन्होंने विश्वविजेता अरबों से दस साल नाक रगड़वाकर टैक्स लिया।
राणा सांगा को घबराए बाबर ने टैक्स देने का प्रस्ताव किया।
पर दोंनों ही हिंदू महानायक एक जबरदस्त भूल कर गये।
वे मु स्लिमों की क मी न गी भरी रणनीति को नहीं पहचान पाये कि वे वक्त गुजार रहे हैं और मौके का इंतजार कर रहे हैं।
परिणाम सबके सामने है।
इस समय लोहा गरम है।
अगर इस समय हर शहर से हमारे मंदिरों पर बनाई मस्जिदों के विरुद्ध रिट लगाना शुरू कर दें तो ये इतने हतोत्साहित हो जाएंगे कि Ex-M uslim इतने होंगे कि उनका अपना समाज बन जायेगा और फिर शादी ब्याह की भी कोई समस्या नहीं रहेगी।
इ स्लाम के अपने अध्ययन के आधार पर मैं आपको साफ बता रहा हूँ कि इ स्लाम सत्ता के बिना जिंदा नहीं रह सकता।
आप उनसे सत्ता छीन लीजिये, उनके सिर से इ स्लाम का भूत उतर जाएगा।
प्रहार और निरंतर प्रहार।
आर्थिक, सामाजिक और इतिहास के प्रहार।
बस निरंतरता पहली शर्त है।
अगर उन्हें सांस मिल गई तो वे आपको दूसरा मौका नहीं देने वाले इस बार।

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