हर चरण पर मित्र पूँछते है UP मा का बा. इस बार संक्षेप में एक मुस्त लिख दे रहा हूँ
उत्तर प्रदेश में परिस्थितियाँ बिल्कुल 2017 वाली ही हैं. जिन्होंने 2017 में भाजपा को वोट दिया था वह भाजपा को दे रहे हैं, जिन्होंने सपा को दिया था वह सपा को दे रहे हैं. कोई विशेष बड़ा वर्ग इधर से उधर नहीं हुआ है. कोई भी ऐनलस्ट हो जो डंके की चोट पर बोल रहा हो कि पिछली बार फलाने समूह के जिसके दस प्रतिशत वोट हैं वह इधर से उधर हुआ हो न मिलेगा.
निहसंदेह जाट वोट में थोड़ा डैमेज हुआ पर जाट वोट ओवर रेटेड है. बस पचीसेक सीटों पर ही प्रभाव है.
ओवरॉल में पिछली बार की तुलना में इस बार भाजपा का कार्यकर्ता थोड़ा उदासीन है तो एक दो प्रतिशत नुक़सान, पर सपा सदैव उम्मीदवार के दम पर लड़ती है, इस बार लेट टिकट से उनका इतना ही नुक़सान. भाजपा विधायकों से नाराज़गी से एक दो प्रतिशत नुक़सान तो सपा में भी अखिलेश भैय्या रायता समेत न पाए सेम नुक़सान उधर. उनके गढ़बँधन की वजह से उन्हें थोड़ा जाट थोड़ा इधर उधर फ़ायदा तो बसपा के समर्थन से भाजपा को एकमुस्त दलित वोट का फ़ायदा. शिक्षकों के एक छोटे समूह के अलावा ops से कोई विशेष नुक़सान नहीं – एक दो प्रतिशत का तो महिलाओं के वोट इस बार भाजपा के लिए बोनस. बाक़ी बाबा का बुलडोज़र क़ानून व्यवस्था से भी कुछ वोट आया है.
ओवेराल लम्बे समय बाद ऐसा चुनाव है जिसमें कोई लहर नहीं है क्योंकि सब कुछ सेम है पहले जैसा. अखिलेश को 2017 की भाजपा लहर रिवर्स करने के लिए दस प्रतिशत वोट का दायरा तय करना पड़ेगा. आज की तारीख़ में एक दो प्रतिशत भी कवर नहीं कर पा रहे हैं.
कितनी सीट पाएँगे – यह बड़े बड़े सेपोलोगिस्ट न बता पाते है , पर यह तय है सरकार भाजपा की आ रही है. सीटें पिछली बार जितनी, उससे कुछ कम उससे कुछ ज़्यादा भी हो सकती हैं.
नोट: इस अनालिसिस का कुछ हिस्सा एक बड़े एडिटर जिनकी राय मुझे सदैवअच्छी लगती है, वह कई चुनाव वाक़ई कवर कर चुके हैं उन से मेरी कल की बात चीत पर भी बेस्ड है.