दरअसल पिछले दो साल से तारीख ए सीस्तान और तफ़्सीर उल तबारी के अंशों तथा अन्य कई स्रोतों का अध्ययन कर रहा था।
कल समरकंद से लेकर कश्मीर तक ‘अल हिंद’ के खत्म होने के पैटर्न का जो फॉर्मूला निकला और उसमें आंकड़े डालने पर जो परिणाम आया वह बहुत डरावना था।
और हम लोग यह सोच सोचकर बड़े खुश हैं कि हम तो सनातन हैं, कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है।
मैं डर गया जब यह पाया कि अफगानिस्तान के पठान भी कभी इस्लाम के बारे में बिल्कुल यही…एकदम यही विचार रखते थे।
मु स्लिम शब्द से ही उबल पड़ने वाले वही हिंदू पठान आज कितने कट्टर मुस्लिम हैं, बामियाँ के बुद्ध देख ही चुके
इसी बीच भागवत जी का बयान आ गया तो बस ……उद्विग्न अवस्था में हो गया विस्फोट।
इस देश में मेरे जैसे तुच्छ लोग क्या अध्ययन कर रहे हैं, क्या जानते हैं, क्या खोजा है उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है।
बाकी सब बुद्धिमान लोग कह रहे हैं तो मुझे भी मान लेना चाहिए कि कोई खतरा नहीं और हमारे वृद्ध जनों की ‘लोया जिरगा’ के पास सारी जानकारी और सारी योजनाएं हैं।
बेकार ही क्षुब्ध हूँ मैं।
जिन बंधुओं को पिछले आलेखों से दुःख पहुंचा है उनसे भी क्षमाप्रार्थी हूँ। अब मुझे अलग से कुछ नहीं सोचना। जो सबके साथ होगा उसका ही सहभागी बनूँगा।
‘होइए जोइ राम रुचि राखा’