पिछले 2 दशक में व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं ईर्ष्या प्रतिस्पर्धा स्वार्थ के कारण भाजपा में भाजपाइयों द्वारा ही समर्थ समर्पित नेताओं का विद्रूप विरोध देखा है, आडवाणी, अटल, नरेन्द्र मोदी,योगीजी,स्मृति ईरानी …सुदीर्घ श्रृंखला है।एक बार स्मृति के वातायन को खटखटा कर खोलिए, सबका ध्यान हो आएगा।
किन्तु यह भी उतना ही सत्य है कि जिसमें प्रतिभा क्षमता रही है,उन्होंने भीतरी बाहरी सारी लड़ाइयाँ लड़कर अपनी जगह भी बनायी और राष्ट्रसेवा का लक्ष्य भी पाया।राजनीतिक योद्धाओं को यह करना ही पड़ता है,अन्यथा परिवारवादी दलों की तरह निर्विरोध अपने कुएँ में वे सुरक्षित तो रहते हैं,पर समय के साथ हर कुँवा सूखता ही है।
नुपूर शर्मा,नवीन जिन्दल का निलम्बन मुझे उसी आन्तरिक राजनीति का प्रस्फुटिकरण दिख रहा है।मुझे नहीं लगता कि इस निर्णय में शीर्ष नेतृत्व की कोई सहभागिता होगी,,किन्तु अब जब यह हो चुका है तो इसका काट निकालने में उन्हें थोड़ा समय तो लगेगा ही।नुपूर शर्मा के प्रतिद्वंदियों को छोड़,आज भाजपा में भी हर किसी को लग रहा होगा कि यह गलत हुआ।दिल्ली चुनाव में बहुत दिन नहीं है और यह खेल केजरीवाल का करवाया हुआ हो(ज्ञात हो कि मीडिया चैनलों ही नहीं,दिल्ली भाजपा को भी उन्होंने जेब में रखा है),तो कोई भारी बात नहीं।
किन्तु,,,मुझे नुपूर शर्मा में वह संभावना दिखती है जो स्मृति ईरानी में दिखती थी और मैं आश्वस्त हूँ कि अपने स्वयं के बल पर जैसे मोदी योगीजी ने अपना स्थान बनाया, विश्वसनीयता स्थापित कर दी,यदि नुपूर शर्मा में वह बात हुई तो वे भी अवश्य अभीष्ट प्राप्त करेंगी।
बाकी अपनी बात कहूँ तो 5 वर्ष तक पूरे अविश्वास के साथ प्रत्येक गतिविधियों पर गहरी नज़र रखने के उपरांत ही भाजपा पर अपना विश्वास स्थिर किया है मैंने।मुझे कोई भ्रम नहीं कि सभी भाजपाई मोदी योगी नहीं, परन्तु यह भी सिद्ध है कि यदि नेतृत्व दृढ़ और सही हो तो नीचे वाले कितना भी बिगड़ें बिगाड़ें पूरी तरह सब नष्ट नहीं कर सकते।
मैं यह जानती हूँ कि आज के दिन में केवल और केवल भाजपा है जिसके सत्ता में रहते देश और हिन्दुओं का हित सुरक्षित है।
मैं यह जानती हूँ कि रेत के तरह सत्ता के फिसलते जा रहे संभावनाओं को बचाने के लिए सभी परिवारवादी पार्टियाँ, देश को अप्रत्यक्ष रूप से इस्लामिक देखने और इसे पूरी तरह इस्लामिक पाने के इच्छुक, वामी, भारतद्रोही बाहरी शक्तियाँ अगले चुनाव तक देश में आग लगवाने में अपना सबकुछ झोंक देंगे और ऐसे में यदि हम क्षणे रुष्टा, क्षनै तुष्टा स्वरूप में रहे तो केवल और केवल अपना अकल्याण करेंगे।
मैं यह देखती हूँ कि अगले 2 वर्षों में मोदी सरकार को बहुत बड़े बड़े काम करने हैं जिसके लिए भारत का स्थिर,दंगामुक्त रहना बहुत जरूरी है।मन्दिर मस्ज़िद के घेरेबन्दी में वे घेरकर साबित करना चाहते हैं कि मोदी सरकार मुस्लिम विरोधी है,,जबकि इस मुद्दे के स्थायी समाधान में सरकार विश्वास रखती है ताकि लिए गए निर्णय चिरकालिक हो,अतः संवैधानिक तरीके से ही सारा कुछ गुजारना चाहती है।
मैं जानती हूँ कि डोवाल जी, जयशंकर जी जैसे कई लोगों की कोर टीम जिनमें से अधिकांश को हम नहीं जानते,,हमसे बहुत अधिक विद्वान दूरदर्शी और सक्षम हैं जो राष्ट्रीय हितों से कभी कोई समझौता नहीं करेंगे।अतः मैं इनपर विश्वास रखते घटनाक्रमों को देखूँगी, विवेक जागृत रखते अपने हिसाब से स्थिति को समझने का प्रयास करूँगी,,न कि टूलकिटियों के फेंके एजेन्डों को लपककर अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारूँगी।
मैं जानती हूँ कि हमारी संवेदनशीलता जहाँ हमारी बहुत बड़ी शक्ति है,वहीं अविवेक अधीरता और अविश्वासी प्रवृत्ति सबसे बड़ा शत्रु भी है जिसके कारण “भाजपा तुझसे बैर नहीं,वसुंधरा तेरी खैर नहीं” में बहकर हम स्वयं ही अपने गरदन पर नोटा या चुनाव बहिष्कार रूपी कुल्हाड़ी मारते हैं।
मेरी हार्दिक कामना यह है कि पिछले एक दशक से बढ़ती जा रही राजनीतिक चेतना परिपक्व होकर देश और लोकतंत्र को स्वस्थ सुरक्षित करे।और मैं जानती हूँ कि यह होगा।
व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और भाजपा नेताओं का विद्रूप विरोध
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