प्री वेडिंग और वेडिंग शूट से संबंधित पिछले पोस्ट पर ‘प्रगतिशील’ विचारों वाली अनुराधा गुप्ता जी ने लिखा — ”जिन्हें आपत्ति हो वो न देखें। मज़े की बात है, देखते भी हैं मज़े भी लेते हैं और आपत्ति भी होती…
परम्पराए
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साहित्य लेखआशीष कुमार अंशुपरम्पराएसामाजिक
शादी का मतलब भारत में आज भी दो परिवारों का मिलन
by Ashish Kumar Anshu 349 viewsशादी का मतलब भारत में आज भी दो परिवारों का मिलन है। दो परिवार रिश्ते में बंधते है। यह कोई कांट्रेक्ट नहीं है। यहां तो जन्म-जन्म के साथ की बात कही गई है। लेकिन पिछले कुछ समय से हिन्दू…
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हमारी तरफ शादी के बाद सुबह खिचड़ी खवाई की रस्म होती है। खिचड़ी खवाई रस्म में दुल्हा, दुल्हन के आंगन में बैठता है। जहां उसके तथा उसके सगे तथा..चचेरे, ममेरे, फूफेर भाई तथा एक दो साथी-संघाती भी बैठ लेते हैं।…
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स्वामी व्यालोकपरम्पराएलेखक के विचार
आप गू निर्यात भी करते हैं और आयात भी…
by Swami Vyalokby Swami Vyalok 441 viewsअचानक ही भारतवर्ष की महान सांस्कृतिक-दूत, इंफ्लुएंसर और विदुषी-सामाजिक कार्यकर्त्री प्रियंका चोपड़ा जी के दर्शन हुए। (साला, इस नाम में ही कोई दोष है, विदुर) वह किसी अंग्रेज को होली के बारे में बता रही थीं। कुल जमा उनका सार…
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होली बनाम गाँव का रंग गाँव आपके अन्त:करण में ऐसे धँसा होता है जिसको आप चाह कर भी निकाल नही पाते हैं। गाँव के त्योहार का लालित्य और सौन्दर्य शब्दों में उतरने के लिए तैयार ही नही होता हैं।होली…
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परम्पराएप्रांजय कुमारसामाजिक
रंगों के त्योहार होली की पुनश्च अनंत-अशेष शुभकामनाएँ
by Pranjay Kumar 541 viewsरंग, रस, रूप, गंध के बिना जीवन नीरस और बेस्वादा रह जाता है। सनातन संस्कृति में इनमें से किसी की उपेक्षा नहीं की गई। जीवन का उत्सव है सनातन। जीवन के हर दिन, हर पल को उल्लासमय बनाना हो तो…
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हर-हर-महादेव! व्यक्ति की सबसे बड़ी समस्या यही है कि वह सच नहीं बोल पाता। खुद से भी नहीं। प्रकृति ने उसे जो बनाया है, वह रह ही कहां पाता है। आवरण पर आवरण। चेहरे पर चेहरा। जब व्यक्ति स्वयं तक…
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मदन का पतन जैसे ही शिव की दृष्टि से हुआ वैसे ही संसार से रति की माया का लोप हो गया, कर्ता चिंतित हो उठा …! क्या अब यह सृष्टि थम जाएगी..? क्या सृष्टि अपनी आयु पूरी कर चुकी है…
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परम्पराएत्रिलोचन नाथ तिवारीसाहित्य लेख
आयीं हे सुरुज देव, लीहीं न अरघिया हमार
by त्रिलोचन नाथ तिवारी 849 viewsपूर्वाञ्चल के नदियों एवं जलाशयों के तट पर श्रद्धा का महापूर उमड़ा है । भारती प्रजा अपने प्रत्यक्ष देव को अपना समस्त अनुग्रहीत भाव समर्पित करने हेतु व्रत-विनत भाव से एकत्र हुई है। मगध के अञ्चलों से निकल कर समस्त…
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मेरी एक दोस्त हैं। युवा हैं और कविताएं लिखती हैं। एक दिन पूछने लगीं कि लेखक या कवि जो भी लिखते हैं क्या वही लिखते हैं जो उन के साथ घटित होता है? मैं ने उन्हें बताया कि बिलकुल नहीं।…