Home राजनीति ज्ञान वापी और शारदा भाषा | प्रारब्ध

ज्ञान वापी और शारदा भाषा | प्रारब्ध

Author - Ranjay Tripathi

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लिखना .. सूचीबद्ध करना, नामकरण करके और कहानियाँ बना के उसको सुनाना क्यों महत्वपूर्ण होता है .. कैसे हमारे पूर्वजों ने इस व्यवस्था को जीवन का अंग बनाकर आज हम सबको हर घटना से अवगत करा रखा है … इसका दो उदहारण देता हूँ …

 

पहला शब्द है :::: ज्ञानवापी …
सब कहते हैं ज्ञानवापी मस्जिद .. “ज्ञानवापी” ये तो संस्कृत का शब्द है .. इससे उर्दू, अरबी, फ़ारसी, तुर्की, मंगोल आदि से क्या लेना देना .. वो मुग़ल लोग मस्जिद का नाम ज्ञानवापी क्यों रखेंगे … हमने सदा से सुना ज्ञानवापी ही है ….
तो ज्ञानवापी क्या है ये जानते हैं .. जो असली मंदिर है उसमे एक कुँआ है जिसका नाम है “ज्ञानवापी” .. “ज्ञानवापी” मतलब होता है “ज्ञान का भंडार” अथवा “ज्ञान का कुआँ …” तो ज्ञानवापी किसी का नाम नहीं है …. एक जगह जहाँ अद्भुत ज्ञान का संचार होता है क्योंकि आप देवाधिदेव महादेव के सन्निद्ध में रहते है … औरंगजेब ने उसी कुवें में शिवलिंग को फेंकवा दिया गया था … और मन्दिर परिसर को तोड़कर मस्जिद बनाया था … काशी के लोगों ने उसको “ज्ञानवापी मस्जिद” बोल कर .. “ज्ञानवापी” को जिन्दा रखा .. इसलिए उस परिसर को ज्ञानवापी मस्जिद कहते हैं ….. उस मस्जिद का अलसी नाम जो औरंगज़ेब के जमाने में दिया गया वो था “अंजुमन इन्तहाज़ामिया ज़ामा मस्जिद ” ….
उसके आगे की बात ये है कि मराठा राजा मल्हार राव होलकर ने काशी में “अंजुमन इन्तहाज़ामिया मस्जिद” के जगह पर वापस ज्ञानवापी मन्दिर बनवाने का फैसला किया .. लेकिन लखनऊ के नवाबों ने उसका विरोध किया … महाराज होलकर इन लखनऊ के नवाबों के हठ से कोई हल नहीं निकाल सके .. उनके बाद उनकी पुत्र वधू अहिल्याबाई होलकर ने मस्जिद के बगल वाला मंदिर बनवाया जिसमे आज लोग दर्शन के लिए जाते हैं … इनके नाम से एक घाट अहिल्याभाई होलकर घाट भी है …. इस तरह ज्ञानवापी शब्द के बोलचाल, लेख आदि में प्रचलन होने के कारण कभी मंदिर तोड़कर बनाई गयी मस्जिद को उसके दिए गए नाम से जानने ही नहीं दिया …
दूसरा है …. कश्मीर की भाषा शारदा – गिलगित बाल्टिस्तान की भाषा बल्टी …
हमेशा से इस जगह पर शारदा और बाल्टी भाषा का प्रयोग होता रहा .. दोनों भाषाएं संस्कृत से उपजीं … इस तरफ के लोगों ने भाषा को लिखना और सूचीबद्ध करना कम कर दिया … धीरे धीरे इस भाषा में लिखा पुस्तक, श्लोक, कवितायेँ … ग्रन्थ आदि सब विलुप्त हो गए … आज का समय ऐसा है कि कश्मीर और गिलगित बल्टिस्तान में इन भाषाओँ का शब्द यानी कि Alphabet तक उपलब्ध नहीं है .. इसके व्याकरण की बात ही छोड़िये … अब ये भाषा केवल बोलचाल की भाषा रह गई है … भारत के कश्मीर में शारदा बोलने वाले भी इसमें उर्दू का उपयोग करने लगे हैं … पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में शारदा + पंजाबी जबकि गिलगिट बाल्टिस्तान में बल्टी + पंजाबी और पश्तो बोली जाती है … बस कुछ समय की बात है जब पूरी तरह से शारदा और बल्टी भाषा समाप्त हो सकती है ….
कश्मीरी पंडितों को challenge है कि वो पंडिताई दिखाएं और हो सके तो शारदा और बल्टी को revive करें …
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ये होता है महत्त्व …
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